सतलुज-यमुना जल बंटवारे के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में शुक्रवार
को केंद्र सरकार ने कोर्ट को
बताया की पंजाब सरकार ने सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के बचे हुए हिस्से का
निर्माण करने से मना कर दिया है। इसके लिए पंजाब ने कारण यह दिया है कि पंजाब के पास हरियाणा
के साथ साझा करने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है।
पिछले साल अक्टूबर और इस साल जनवरी में
दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच हुई दो बैठकों की रिपोर्ट में पंजाब सरकार
ने जोर देकर कहा है कि एसवाईएल नहर के निर्माण की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि
पंजाब हरियाणा के साथ पानी साझा नहीं कर सकता है।
चार जनवरी को हुई बैठक के
दौरान पंजाब सरकार का मानना था कि रावी, ब्यास और सतलज नदियों में पानी की उपलब्धता कम हो गई है, जिसके कारणहरियाणा के
साथ साझा करने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है। चूंकि ब्यास और सतलज नदियों में हरियाणा के साथ
साझा करने के लिए कोई अतिरिक्त पानी नहीं है, इसलिए एसवाईएल नहर के निर्माण की आवश्यकता नहीं है।
भगवंत मान सरकार ने
कानून-व्यवस्था पर भी विवाद खड़ा करने की कोशिश की। 2016
में पंजाब ने एसवाईएल नहर के निर्माण के लिए
अधिग्रहित भूमि को पहले ही गैर अधिसूचित कर, किसानों को लौटा दी थी। इसलिए एसवाईएल
के निर्माण से अब कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है।
ताजा ख़बरें
केंद्र सरकार द्वारा दायर
की गई प्रगति रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब सरकार ने अन्य राज्यों के साथ नदी
जल के बंटवारे पर 1985 के पंजाब अकॉर्ड (राजीव-लोंगोवाल समझौते) को रिओपेन
करने की मांग की है।
24 जुलाई,
1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री
राजीव गांधी और शिरोमणि अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोंगोवाल ने
हस्ताक्षर किए थे। इसके पहले भाग में कहा गया है कि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के किसानों को 1 जुलाई, 1985 को रावी-ब्यास जितना
पानी मिल रहा है, उतना पानी मिलता
रहेगा। बचे हुए पानी के बंटवारे
के लिए समझौते के एक न्यायाधिकरण गठित किया जाएगा जो यह तय करेगा कि किसको कितना
पानी मिलेगा। समझौते के तीसरे हिस्से में कहा गया था कि एसवाईएल नहर का निर्माण
जारी रहेगा।
केंद्र सरकार द्वारा दायर की गई प्रगति रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब सरकार ने अन्य राज्यों के साथ नदी जल के बंटवारे पर 1985 के पंजाब अकॉर्ड (राजीव-लोंगोवाल समझौते) को रिओपेन करने की मांग की है।
केंद्र सरकारा द्वारा
दायर की गई रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब सरकार का
कहना है कि एसवाईएल नहर के निर्माण को पूरा करने के की शर्त पर चर्चा करने से पहले
1985 के समझौते के पहले दो खंडों का निपटारा किया जाना चाहिए।
पंजाब ने यह भी तर्क दिया कि पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट (पीटीएए),
2004 अभी भी लागू है और इस
कानून के अनुसार, हरियाणा को कोई
अतिरिक्त पानी नहीं दिया जाएगा।
बैठक में, हरियाणा सरकार ने समझौते के अनुसार नहर के
निर्माण के अलावा किसी भी पहलू पर विचार करने से इनकार कर दिया और 2002 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संदर्भ में भी।
उन्होंने कहा, 'माननीय उच्चतम
न्यायालय पहले ही एसवाईएल को पूरा करने का आदेश पारित कर चुका है और इसे पंजाब
द्वारा लागू किए जाने की जरूरत है। पीटीएए के मसले पर हरियाणा ने कहा
कि इस कानून को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक घोषित कर दिया है।
केंद्र सरकार ने कोर्ट को
बताया कि उसके अथक प्रयासों के बाद भी, दोनों राज्यों के बीच हुई बैठक में एसवाईएल
के निर्माण मुद्दे पर कोई समझौता नहीं हो सका है। हालांकि, दोनों ही राज्य भविष्य में इस मुद्दे पर एक व्यावहारिक
समाधान पर चर्चा करने के लिए सहमत हुए। केंद्र सरकार का जल शक्ति मंत्रालय
सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए राज्यों को सहमत करने के सभी प्रयास कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने 15
जनवरी, 2002 को जारी एक डिक्री में हरियाणा के पक्ष में फैसला सुनाते हुए
पंजाब सरकार को एक साल के भीतर एसवाईएल नहर का निर्माण करने का निर्देश दिया था।
इसके बाद भी दोनों राज्यों के बीच विवाद बना हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश 1996
में हरियाणा सरकार द्वारा दायर एक मुकदमे पर दिया
था। जून 2004 में, अदालत ने पंजाब सरकार द्वारा दायर मुकदमे को
खारिज करते हुए अपने पिछले फैसले को ही दोहराया।
पंजाब से और खबरें
साल 2004 में पंजाब ने एक कानून पारित किया जिसके तहत उसने एसवाईएल के
निर्माण पर हरियाणा के साथ हुए समझौते को रद्द कर दिया। पंजाब द्वारा बनाया गया
कानून पीटीएए(2004)
राष्ट्रपति के संदर्भ के माध्यम से सुप्रीम
कोर्ट में लाया गया था, नवंबर 2016
में सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारत के संविधान के
प्रावधानों के अनुसार नहीं माना गया था।
हालांकि, तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल ने जनवरी 2017 में कोर्ट में कहा था कि राष्ट्रपति के संदर्भ
में एक राय का मतलब कानून को रद्द करना नहीं होगा, क्योंकि पीटीएए, 2004 की वैधता को चुनौती देने वाला कोई दूसरा पक्ष
नहीं था। सॉलिसिटर जनरल इस कथन को पंजाब सरकार ने यह मान लिया कि 2004 में बना पीटीटीए कानून अभी भी लागू है।
इस मुद्दे पर 4 जनवरी को
भी गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक हुई लेकिन
दोनों ही लोग अपने रुख पर अड़े रहे।
बैठक में पंजाब के
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि पंजाब के पास साझा करने के लिए 'पानी की एक बूंद भी' अतिरिक्त नहीं है, तो वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर
ने कहा कि नहर का पूरा निर्माण और इसके माध्यम से पानी प्राप्त करना उनके राज्य के
लिए 'अधिकार' का मामला है।
19 जनवरी को,
हरियाणा सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि बातचीत
से विवाद का हल नहीं निकाला सकता है। कोर्ट से अपने आदेशों के पालन के लिए दबाव डालने के लिए कहा।
खट्टर सरकार ने कोर्ट से
आग्रह किया कि सुलह पर जोर देने के बजाय न्यायिक पक्ष से मामले की सुनवाई करने पर
विचार किया जाए और यह सुनिश्चित करने के लिए आदेश पारित किया जाए कि पंजाब सरकार
अपने दायित्व को पूरा करे।
अपनी राय बतायें