कांग्रेस नेतृत्व ने आख़िरकार पंजाब के बड़े नेताओं को साधने की कोशिश करते हुए उन्हें चुनाव में काम पर लगा दिया है। पार्टी ने इन नेताओं को जिम्मेदारियां सौंप दी हैं और इसका सीधा मतलब यही है कि वे आपसी रार भुलाकर चुनाव जिताने के काम में जुट जाएं। राहुल गांधी ने भी कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ को दिल्ली तलब कर उनसे घंटों तक बातचीत की थी।
पार्टी ने लंबे वक़्त से नाराज़ चल रहे सुनील जाखड़ को बेहद अहम चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया है। वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी को प्रदेश चुनाव प्रचार समन्वय समिति की जिम्मेदारी तो राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा को घोषणापत्र कमेटी की जिम्मेदारी दी गई है। सोनी पंजाब की सियासत में अहम चेहरा रही हैं तो बाजवा भी प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं।
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी मुश्किल सुनील जाखड़ की सिद्धू से नाराज़गी है। जाखड़ का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए लगभग फ़ाइनल हो गया था लेकिन अंत समय में उनका नाम कट गया। इससे जाखड़ नाराज़ बताए जा रहे थे।
इसके बाद सिद्धू के निजी हमलों का जाखड़ ने खुलकर जवाब दिया था। जाखड़ सिद्धू से तो नाराज़ हैं ही वह पार्टी से भी दूरी बनाकर चल रहे थे। जाखड़ ने कुछ दिन पहले इशारों-इशारों में सिद्धू के कामकाज के तरीक़े को बंदर डांस बताया था।
कांग्रेस की चिंता इस बात को लेकर भी है कि क्या उसके कुछ विधायक, मंत्री अमरिंदर सिंह के साथ जा सकते हैं। ऐसा हुआ तो पार्टी को चुनाव में नुक़सान हो सकता है। ऐसे में जब कुछ सर्वे इस बात को दिखा रहे हैं कि पंजाब में आम आदमी पार्टी कांग्रेस से ज़्यादा सीटें ला सकती है तो कांग्रेस के सामने निश्चित रूप से चुनौतियां बढ़ी हुई हैं। लेकिन चन्नी ने बीते दिनों आम आदमी का मुख्यमंत्री वाली जो छवि बनाई है, उससे निश्चित रूप से पार्टी को फ़ायदा हो सकता है।
देखना होगा कि हाईकमान के द्वारा जिम्मेदारी दिए जाने के बाद क्या ये नेता मिलकर काम करेंगे और कांग्रेस को जीत दिलाएंगे।
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