पंजाब कांग्रेस में सब कुछ ठीक हो जाने के हाईकमान के दावे सिर्फ़ दावे ही दिखाई देते हैं। क्योंकि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर तीख़े तेवर बरकरार हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कुछ दिन पहले दिल्ली आकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से सिद्धू की शिकायत की थी और अब ख़बर यह है कि 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर चंडीगढ़ में पार्टी मुख्यालय पर आयोजित कार्यक्रम में अमरिंदर सिंह नहीं गए। बताया गया है कि उस दिन वह अमृतसर में थे।
सिद्धू ने बीते दिनों में अमरिंदर सिंह पर हमले तेज़ किए हैं। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि या तो अमरिंदर सरकार कृषि क़ानूनों को लेकर कुछ करे वरना पार्टी के विधायक इस मामले में कोई फ़ैसला करेंगे।
महासचिव (संगठन) बेहद ताक़तवर पद माना जाता है और इस पद पर परगट सिंह की नियुक्ति अमरिंदर सिंह और उनके समर्थकों को क़तई रास नहीं आएगी।
माली को बनाया सलाहकार
सिद्धू के एक और काम से अमरिंदर सिंह के साथ उनका विवाद फिर से हरा हो सकता है। कुछ दिन पहले सिद्धू ने 4 लोगों को अपना सलाहकार नियुक्त किया था। लेकिन इनमें से एक सलाहकार मलविंदर सिंह माली लगातार मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ टिप्पणियां करते रहे हैं, इसलिए जब सिद्धू ने उन्हें अपना सलाहकार बनाया तो कांग्रेस के ही कई नेताओं ने इस पर नाराज़गी जाहिर की थी।
माली ने अपनी पोस्ट में लिखा था, “पंजाबियों, होशियार और ख़बरदार हो जाओ। कैप्टन, अमित शाह और मोदी की तिकड़ी के द्वारा पंजाब के अंदर अविश्वास, सांप्रदायिक तनाव, डर और दहशत पैदा करने के संकेत हैं और यह पंजाबियों और किसानों के लिए ख़तरे की घंटी है।”
टिकटों का बंटवारा कैसे होगा?
सिद्धू साढ़े चार साल पहले कांग्रेस में आए हैं जबकि कैप्टन लंबा वक़्त पार्टी में गुजार चुके हैं। एक बड़ी बात यह है कि टिकट बंटवारे में इन दोनों नेताओं के बीच जबरदस्त खींचतान होगी और इसका नुक़सान पार्टी को हो सकता है। सिद्धू जानते हैं कि अमरिंदर की उम्र ढल चुकी है इसलिए अगर वह अपने ज़्यादा समर्थकों को टिकट दिला पाए और जिता पाए तो मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोक सकेंगे।
लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह भी आखिरी दम तक सिद्धू को उनसे आगे निकलने से रोकेंगे। हालांकि उनकी उम्र को देखते हुए कहना मुश्किल है कि वे कब तक ऐसा कर पाएंगे।
लेकिन इन दोनों नेताओं के सियासी रिश्तों को देखते हुए नहीं लगता कि पंजाब में सरकार और संगठन साथ आ पाएंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो पंजाब में कांग्रेस की नाव डूबनी तय है और अगर दोनों नेता मिलकर लड़े तो फिर से कांग्रेस राज्य की सत्ता में आ सकती है।
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