कांग्रेस ने पंजाब के स्थानीय निकाय चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया है जबकि शिरोमणि अकाली दल को करारा झटका लगा है। पंजाब में अकाली दल की बैशाखी के सहारे राजनीति करने वाली बीजेपी भी पूरी तरह साफ हो गई है। पहली बार स्थानीय निकाय चुनाव में उतरी आम आदमी पार्टी अपनी ही उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी।
कांग्रेस ने पंजाब के 8 में से 7 नगर निगमों में जीत दर्ज की है। इनमें मोगा, अबोहर, बठिंडा, कपूरथला, होशियारपुर, पठानकोट और बटाला शामिल हैं। मोहाली नगर निगम के नतीजे आज घोषित किए जाएंगे क्योंकि यहां दो वार्डों में फिर से मतदान हुआ है।
कांग्रेस को इन निगमों के 351 वार्डों में से 271 में जीत मिली है। जबकि अकाली दल को 33, बीजेपी को 20, आम आदमी पार्टी को 9 और निर्दलियों को 18 वार्डों में जीत मिली है। 109 नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में कांग्रेस को 1,078, अकाली दल को 251, आम आदमी पार्टी को 50, बीजेपी को 29, बीएसपी को 5 और 375 वार्डों में निर्दलियों को जीत मिली है।
इसके अलावा भी कांग्रेस को बरनाला, धुरी, चमकौर साहिब, मलेरकोटला, ज़िरकपुर, मेहतपुर, लोहिया खास और फिल्लौर में जीत मिली है। पंजाब के तीनों इलाक़ों माझा, दोआबा और मालवा में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा है।
स्थानीय निकाय के नतीजों से पता चलता है कि कांग्रेस विरोधी दलों पर बहुत भारी पड़ी है और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उसने सियासी बढ़त हासिल कर ली है।
अकाली दल को झटका
कृषि क़ानूनों को लेकर एनडीए का साथ छोड़ने वाली शिरोमणि अकाली दल को इस चुनाव में जबरदस्त झटका लगा है। अकाली दल की ख़राब हालत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वह अपने गढ़ बठिंडा में भी चुनाव हार गयी। यहां 53 साल बाद कांग्रेस को जीत मिली है।
अकाली दल को किसी भी नगर निगम में जीत नहीं मिली है और नगर परिषदों में भी वह कांग्रेस से बहुत पीछे रही है। जबकि दल के प्रधान और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने चुनाव में पूरी ताक़त झोंक दी थी।
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आप की उम्मीदों को झटका
2017 के पहले विधानसभा चुनाव में ही मुख्य विपक्षी दल बनने वाली आम आदमी पार्टी को उम्मीद थी कि किसान आंदोलन का पुरजोर समर्थन करने के कारण उसे इन चुनावों में जीत मिलेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आम आदमी पार्टी पंजाब के अलावा भी बाक़ी राज्यों में खुलकर किसान आंदोलन के समर्थन में उतरी है लेकिन पंजाब के निकाय चुनाव में उसे इसका फ़ायदा नहीं हुआ है। इससे विधानसभा चुनाव 2022 में सरकार बनाने की उसकी उम्मीदें धूमिल हुई हैं।
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किसान आंदोलन के बाद यह पहला बड़ा चुनाव था और माना जा रहा था कि इससे पंजाब के मतदाताओं के मूड का पता चलेगा।
बीजेपी की हालत ख़राब
बीजेपी की हालत बेहद खराब रही और किसानों के गुस्से के कारण यह पहले से ही माना जा रहा था कि उसे इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा और ऐसा हुआ भी। बीजेपी पंजाब में कोई बड़ी राजनीतिक ताक़त नहीं रही है और इस बार उसने अकेले ही चुनाव लड़ा था।
चुनाव नतीजों से यह भी पता चलता है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में पंजाब में कांग्रेस को आम लोगों का समर्थन हासिल है। किसान आंदोलन से प्रभावित इस राज्य में सभी की नज़रें इस बात पर थीं कि किस दल को जीत मिलेगी।
लेकिन इस सबके बाद भी चुनाव नतीजे पंजाब की जो ताज़ा सियासी तसवीर सामने रखते हैं, वह यही है कि कांग्रेस के लिए यह एक बड़ी जीत है और किसानों के आंदोलन से उसे राजनीतिक नुक़सान नहीं हुआ है, यह तात्कालिक राहत तो है ही अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बड़ी मनोवैज्ञानिक बढ़त भी है।
चुनाव नतीजों के बाद मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा कि यह हर पंजाबी की जीत है और इससे साफ होता है कि पंजाब के लोग विकास चाहते हैं और उन्हें नफ़रत की राजनीति से मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा कि लोगों ने बीजेपी, अकाली दल और आम आदमी पार्टी की नकारात्मक राजनीति को नकार दिया है।
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