पंजाब कांग्रेस में चल रहा संकट पूरी तरह ख़त्म भले न हुआ हो, पर इस पर थोड़ा विराम ज़रूर लगा है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने एलान किया है कि कैबिनेट ने एडवोकेट जनरल ए. पी. एस. देओल का इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया है। जिस समय उन्होंने इसकी घोषणा की, पंजाब कांग्रेस प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू उनकी बगल में बैठे हुए थे।
समझा जाता है कि इससे सिद्धू को खुशी हुई है और अब कांग्रेस व उसकी सरकार के मुख्यमंत्री तात्कालिक रूप से ही सही, राहत महसूस कर सकते हैं।
देओल का इस्तीफ़ा एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका था और सिद्धू ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना दिया था। उन्होंने बीते हफ़्ते पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से दिया गया इस्तीफ़ा वापस ले लिया था, लेकिन कहा था कि वे फिर से अपना कामकाज उस समय संभालेंगे जब पुलिस महानिदेशक आई. पी. एस. सहोटा और एडवोकेट जनरल देओल को पद से हटा दिया जाएगा।
उन्होंने कहा था,
“
कांग्रेस अध्यक्ष, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का यह सिपाही अपना इस्तीफ़ा वापस लेता है। पर मैं यह साफ कह देना चाहता हूँ कि पदभार उस दिन संभालूँगा जिस दिन राज्य को नए एडवोकेट जनरल और डीजीपी मिलेंगे।
नवजोत सिंह सिद्धू, अध्यक्ष, पंजाब कांग्रेस
उन्होंने इसकी वजह बताते हुए कहा था कि 'जब आप सच के रास्ते पर होते हैं तो पद का कोई मतलब नहीं होता है।'
एडवोकेट जनरल देओल ने तो इस्तीफ़ा 1 नवंबर को ही सौंप दिया था और सरकार ने इसकी पुष्टि भी कर दी थी, पर कहा था कि कैबिनेट बैठक में इस पर फ़ैसला लिया जाएगा।
सिद्धू-देओल
समझा जाता है कि मुख्यमंत्री ने देओल को पद से हटाने की बात मान ली थी, पर उसके बाद जिस तरह सिद्धू ने उन पर हमला किया था, उन्होंने उसे रोक दिया था।
इसके बाद देओल ने सिद्धू पर निजी हमला किया था और पंजाब कांग्रेस ने उस पर पलटवार किया था। समझा जाता है कि सरकार में बैठे किसी ताक़तवर व्यक्ति के इशारे पर ही देओल ने सिद्धू को निशाने पर लिया होगा, वर्ना नौकरशाह राजनीतिक विवादों से दूर ही रहते हैं।
यह संकट बढ़ता ही जा रहा था। पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश चौधरी ने सोमवार को सिद्धू और मुख्यमंत्री चन्नी की एक बैठक करवाई। उस बैठक में यह तय हुआ कि कैबिनेट की बैठक होगी और उसमें एडवोकेट जनरल का इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया जाएगा।
मंगलवार को वैसा ही हुआ।
पंजाब में चार महीने के भीतर विधानसभा के चुनाव होने हैं और कांग्रेस में जिस तरह के झगड़े चल रहे हैं, उससे आम आदमी पार्टी और अकाली दल को राजनीतिक फ़ायदे के आसार हैं, पर कांग्रेस में सिरफुटौव्वल चरम पर है।
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