लोकसभा चुनाव 2019 के बाद पंजाब कैबिनेट से इस्तीफ़ा देकर लंबे वक़्त तक कोपभवन में रहने वाले नवजोत सिंह सिद्धू को मनाने में लगता है कि कांग्रेस आलाकमान कामयाब हो गया है। अपनी शेरो-शायरियों के लिए चर्चा में रहने वाले सिद्धू सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने के लिए दिल्ली आए। इसका एक मतलब साफ है कि यह पूर्व क्रिकेटर अब कांग्रेस छोड़कर वापस बीजेपी में नहीं जाएगा जिसकी चर्चा कुछ महीने पहले पंजाब से लेकर दिल्ली तक थी।
सिद्धू के बीजेपी में जाने की चर्चाओं को तब हवा मिली थी जब बीते साल अगस्त महीने में सिद्धू की पत्नी और अमृतसर से विधायक नवजोत कौर सिद्धू ने कहा था कि बीजेपी अगर शिरोमणि अकाली दल से नाता तोड़ दे तो पार्टी में वापसी पर पुनर्विचार किया जा सकता है। उसके बाद तो कृषि क़ानूनों के मुद्दे पर बीजेपी ने अकाली दल से नाता भी तोड़ लिया था और माना जा रहा था कि अब सिद्धू बीजेपी का दामन थाम लेंगे। लेकिन यहीं पर एंट्री हुई उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की।
रावत को सितंबर के दूसरे सप्ताह में कांग्रेस ने असम से हटाकर पंजाब का प्रभारी बनाया था। बेहद सौम्य स्वभाव के हरीश रावत ने पंजाब पहुंचते ही सिद्धू के साथ डिनर किया, सिद्धू की नाराज़गी को समझा और कुछ दिनों के भीतर ही यह तय करवा दिया कि सिद्धू कांग्रेस में ही रहेंगे।
रावत की मेहनत की बदौलत ही किसान आंदोलन के दौरान भी सिद्धू अमरिंदर के साथ खड़े दिखे और हाल ही में अमरिंदर ने उन्हें अपने घर नाश्ते पर भी बुलाया था।
सिद्धू ने बीजेपी में जाने का विचार इसलिए भी त्याग दिया होगा क्योंकि अब पंजाब में बीजेपी के लिए संभावनाएं पूरी तरह ख़त्म हो चुकी हैं। किसान आंदोलन के दौरान पंजाब में कई जगहों पर किसानों ने बीजेपी नेताओं के कार्यक्रमों में खलल डाला है। ऐसे में सिद्धू समझ चुके थे कि बीजेपी में जाना घाटे का सौदा है।
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तीन अहम बातें
यहां पर तीन बातें अहम हैं। पहली यह कि पंजाब किसान आंदोलन के कारण सबसे ज़्यादा प्रभावित है, दूसरा राज्य में इन दिनों स्थानीय निकाय के चुनाव हो रहे हैं और तीसरा अगले साल फ़रवरी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए मौजूदा वक़्त और आने वाला साल बेहद महत्वपूर्ण है। इसलिए कांग्रेस आलाकमान कतई नहीं चाहता कि सिद्धू जैसा शख़्स जिसकी पंजाब के हिंदू और सिख मतदाताओं में अच्छी पकड़ है, वह नाराज़ हो और इसका नुक़सान पार्टी को हो।
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अमरिंदर सिंह से तनातनी
सिद्धू की तनातनी मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से है। बीजेपी से आए सिद्धू कांग्रेस में बहुत जल्दी कैबिनेट मंत्री बन गए, यह अमरिंदर और उनके करीबियों को हजम नहीं हो रहा था। लोकसभा चुनाव 2019 के बाद सिद्धू पर तमाम तरह के आरोप लगाए गए और नतीजा यह हुआ कि सिद्धू पार्टी छोड़कर चले गए।
प्रदेश अध्यक्ष पद पर नज़र
लेकिन कांग्रेस आलाकमान सिद्धू की अहमियत को जानता है। अच्छी हिंदी बोलने वाले और शेरो-शायरी से माहौल को चुटीला बना देने वाले सिद्धू को फिर से अमरिंदर सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है लेकिन कहा जा रहा है कि सिद्धू प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहते हैं।
यहां एक मुश्किल है। सिद्धू और अमरिंदर दोनों जट सिख हैं और दोनों ही अहम पद यानी मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष एक ही जाति के पास जाने से समाज के दूसरे वर्गों के नेताओं को साधना पार्टी के लिए मुश्किल हो जाएगा। वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष का पद हिंदू समुदाय से आने वाले सुनील जाखड़ के पास है। ऐसे में सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष का पद मिलना मुश्किल है हालांकि कैबिनेट में उन्हें दमदार मंत्रालय ज़रूर मिल सकता है।
देखना होगा कि सिद्धू अगर फिर से कैबिनेट मंत्री बनते हैं तो उनकी अमरिंदर सिंह और उनके करीबियों से कितनी बन पाती है।
अमरिंदर 78 साल के हो चुके हैं और अगले चुनाव के बाद वह लंबी पारी खेल पाएंगे और कितने ऊर्जावान रह पाएंगे, यह वक़्त बताएगा। सिद्धू की नज़र पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है लेकिन जब तक अमरिंदर के पास यह कुर्सी है, तब तक सिद्धू की राह मुश्किल है। माना जाना चाहिए कि कांग्रेस आलाकमान भी सिद्धू जैसे ऊर्जावान और लोकप्रिय नेता को मुख्यमंत्री पद से लंबे समय तक दूर नहीं रखेगा क्योंकि सिद्धू पंजाब के बाहर के मतदाताओं के बीच भी जाने-पहचाने और भीड़ जुटाने वाले चेहरे हैं।
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