पंजाब में तीन महीने के अंदर विधानसभा चुनाव होने हैं और उससे ठीक पहले प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के कारण पार्टी मुसीबत में फंसती जा रही है। सिद्धू की वजह से ही पार्टी ने अपने पुराने वफादार नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को खो दिया लेकिन अब सिद्धू नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के पीछे पड़े हुए हैं।
बेअदबी मामले और ड्रग्स से जुड़ी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग करते हुए सिद्धू ने कुछ दिन पहले कहा था कि अगर इन रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया तो वे अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे।
कांग्रेस के विधायक कुलबीर सिंह ज़ीरा ने न्यूज़ 18 से कहा, “सिद्धू की ओर से उठाए जा रहे मुद्दे सही हो सकते हैं लेकिन इसके लिए पार्टी का प्लेटफ़ॉर्म सही जगह है। पार्टी अध्यक्ष होने के कारण वह सीधे इन्हें मुख्यमंत्री के सामने उठा सकते हैं।”
एक और विधायक बरिंदरमीत सिंह पाहड़ा ने कहा कि हर मुद्दे को जनता के सामने उठाना पार्टी की छवि के लिए अच्छा नहीं है।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि कुछ नेताओं ने इस बात को पार्टी के प्रभारी हरीश चौधरी के सामने भी रखा है। एडवोकेट जनरल ए. पी. एस देओल के इस्तीफ़े को लेकर भी सिद्धू चन्नी सरकार की खासी किरकिरी करा चुके हैं।
सिद्धू का बीते दिनों एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह कहते सुनाई दिए थे कि कांग्रेस बिलकुल मरने वाली हालत में है। इस दौरान उनके मुंह से एक अपशब्द भी निकला था।
इस वीडियो के वायरल होने के बाद भी पंजाब कांग्रेस के कई नेताओं ने मांग की थी कि सिद्धू के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जानी चाहिए। लेकिन चुनाव की दहलीज पर खड़े पंजाब में सिद्धू के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का फ़ैसला क्या सही रहेगा, यह तय करना कांग्रेस हाईकमान के लिए मुश्किल हो रहा है।
जाखड़ के साथ ठनी
सिद्धू की पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ के साथ भी ठन गई है। सिद्धू ने जाखड़ की ओर इशारा करते हुए कहा था कि जो पहले अध्यक्ष थे क्या उन्होंने कभी उनकी तरह मुद्दे उठाए। इसके जवाब में जाखड़ ने ट्वीट कर कहा है, “बुत हम को कहे काफ़िर, अल्लाह की मर्जी है, सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे हैं। बरकत जो नहीं होती, नीयत की खराबी है।”
झगड़ों से सियासी नुक़सान
पंजाब में अकाली दल-बीएसपी के गठबंधन और आम आदमी पार्टी की बढ़ती सक्रियता के बीच कांग्रेस के लिए जीत हासिल करना मुश्किल दिख रहा है क्योंकि पिछले एक साल से चल रहे झगड़ों के कारण पार्टी की ख़ासी फ़जीहत हो चुकी है।
सिद्धू को मनाने की लाख कोशिशें पार्टी हाईकमान ने कीं लेकिन कोई असर नहीं हुआ और सिद्धू लगातार अपनी ही सरकार की जड़ों में मठ्ठा डालने के काम में जुटे हैं और निश्चित रूप से इससे चुनाव में पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है।
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