पंजाब के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने शिरोमणि अकाली दल को तगड़ा झटका देते हुए उसके बड़े नेता मनजिंदर सिंह सिरसा को पार्टी में शामिल कर लिया है। अकाली दल ने इसे खालसा पंथ के साथ धोखा बताया है तो बीजेपी को उम्मीद है कि सिरसा के आने से उसे पंजाब ही नहीं दिल्ली की सियासत में भी फ़ायदा मिलेगा।
सिरसा के बीजेपी में शामिल होने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जिस गर्मजोशी से उनका ख़ैर-मक़दम किया, उससे पता चलता है कि बीजेपी उन्हें पंजाब के चुनाव में कोई बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है।
सुखबीर के थे क़रीबी
सिरसा को अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल का बेहद क़रीबी माना जाता था। दिल्ली में अकाली दल की पूरी सिख राजनीति सिरसा के भरोसे ही चलती थी। सिरसा दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) के अध्यक्ष भी थे लेकिन बीजेपी में शामिल होने से पहले ही उन्होंने यह पद छोड़ दिया।
कृषि क़ानूनों का किया विरोध
कृषि क़ानूनों का मुखर विरोध करने के साथ ही सिरसा पंथ के मामलों में भी बढ़-चढ़कर आवाज़ उठाते रहे हैं। पंजाब, हरियाणा से लेकर दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड के सिख समुदाय के बीच वह जाना-पहचाना चेहरा हैं। ऐसे में सिरसा का बीजेपी किस तरह चुनावी इस्तेमाल करेगी, यह आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा।
दिल्ली में एक बड़ी आबादी सिखों और पंजाबियों की है। इनकी बहुत बड़ी रिश्तेदारी पंजाब में है और कारोबारी रिश्ते भी हैं। डीएसजीपीसी का अध्यक्ष रहने के कारण सिरसा की विशेषकर दिल्ली और पंजाब के सिखों के बीच अच्छी पहचान मानी जाती है।
![Manjinder singh Sirsa joins BJP ahead Punjab elections 2022 - Satya Hindi Manjinder singh Sirsa joins BJP ahead Punjab elections 2022 - Satya Hindi](https://satya-hindi.sgp1.cdn.digitaloceanspaces.com/app/uploads/02-12-21/61a833f2d7af4.jpg)
दिल्ली की राजौरी गार्डन सीट से विधायक रहे सिरसा ने डीएसजीपीसी का अध्यक्ष रहते हुए किसान आंदोलन में जमकर लंगर लगाए और किसानों की आवाज़ को भी बुलंद किया। लेकिन किसान नेता बूटा सिंह बुर्जगिल ने कहा है कि सिरसा ख़ुद को किसानों का बड़ा समर्थक होने का दावा करते थे लेकिन उनका यह यू टर्न बताता है कि लोग इस आंदोलन का किस तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं।
याद दिला दें कि अकाली दल लंबे वक़्त तक बीजेपी का सहयोगी रहा है लेकिन कृषि क़ानूनों पर रार के चलते बीते साल उसने बीजेपी के साथ रिश्ता तोड़ लिया था।
बहरहाल, बीजेपी को पंजाब और दिल्ली में किसी बड़े सिख चेहरे की तलाश थी और माना जा रहा है कि सिरसा के शामिल होने के बाद उसकी यह तलाश ख़त्म हो गयी है।
अपनी राय बतायें