पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने शुक्रवार को एलान किया कि उनकी सरकार मलेरकोटला को राज्य का 23 वां जिला बनाएगी। कैप्टन जिस राज्य के मुख्यमंत्री हैं, वहां के बारे में वह फ़ैसला ले सकते हैं लेकिन उनके इस एलान से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को न जाने क्या दिक्कत हुई कि उन्होंने इसे कैप्टन की पार्टी कांग्रेस से जोड़ दिया और कहा कि मलेरकोटला को जिला बनाया जाना इस पार्टी की विभाजनकारी नीति का परिचायक है।
योगी ने आगे कहा कि मत और मजहब के आधार पर किसी प्रकार का विभेद भारत के संविधान की मूल भावना के विपरीत है। जबकि कांग्रेस ने मलेरकोटला को जिला बनाने का वादा किया था और उसने इस वादे को निभाया है।
इसके अलावा मलेरकोटला में सरकारी मेडिकल कॉलेज, नया बस स्टैंड और महिला थाना बनाने का एलान भी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किया है। अभी तक यह संगरूर जिले में आता था। मुसलिम नेताओं ने कैप्टन के इस एलान का स्वागत किया है।
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस मौक़े पर कहा कि पटियाला राजघराने के मलेरकोटला के नवाब परिवार से बहुत अच्छे रिश्ते थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह पटियाला राजघराने से ही आते हैं।
योगी को मलेरकोटला को जिला बनाए जाने से क्यों परेशानी हुई जबकि यह उनके राज्य से पूरी तरह अलग मामला है और यह फ़ैसला वहां की सरकार ने लिया है। योगी ने जो मत और मजहब का तर्क दिया है, शायद वह मलेरकोटला की आबादी को ध्यान में रखते हुए दिया है और इस तरह के बयान देना उनकी राजनीति को सूट करता है।
बहुसंख्यक हैं मुसलिम
मलेरकोटला पंजाब का एक अकेला ऐसा जिला है, जहां मुसलिम बहुसंख्यक हैं। मलेरकोटला की सबसे अहम बात ये है कि यह एक ऐसी जगह है जहां 1947 में भारत के विभाजन के वक़्त भी कोई ख़ून-ख़राबा नहीं हुआ था। जबकि इसके आसपास काफी फसाद हुआ था।
मलेरकोटला का इतिहास
मलेरकोटला की स्थापना अफ़ग़ानिस्तान से आए सूफ़ी संत शेख़ सदरूद्दीन-ए-जहां ने 1454 में की थी। इसके बाद 1657 में बाजैद ख़ान ने मलेरकोटला की रियासत का गठन किया। भारत की आज़ादी के बाद जब 1956 में राज्यों का पुनर्गठन हुआ तो मलेरकोटला पंजाब का हिस्सा बना। मलेरकोटला में बाबा हैदर शेख़़ की दरगाह है और इसकी काफी मान्यता है।
सिख करते हैं नवाब का आदर
सिखों के दसवें गुरू श्री गोबिंद सिंह के छोटे बेटों ज़ोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को जब सरहंद इलाक़े में दीवारों में चिनवाया जा रहा था, तब मलेरकोटला के नवाब शेर मोहम्मद ख़ान ने इसका पुरजोर विरोध किया था। स्थानीय सिख कहते हैं कि नवाब साहब ने हां दा नारा या हक़ की आवाज़ का नारा देकर सरहिंद के गवर्नर वज़ीर ख़ान से कहा था कि तुम्हें इन मासूम बच्चों से क्या लेना-देना और तुम गुरू गोबिंद सिंह से जाकर लड़ो।
इसके लिए गुरू गोबिंद सिंह ने भी नवाब का आभार जताया था। इस बात को सिख समुदाय आज भी याद करता है और नवाब शेर मोहम्मद ख़ान का बहुत सम्मान करता है। मलेर कोटला में बने गुरुद्वारे का नाम भी हां दा नारा रखा गया है।
मलेरकोटला को भाईचारे का गुलदस्ता या कौमी एकता की मिसाल भी कहा जाता है। मलेरकोटला के इतिहास के बारे में पढ़कर या जानकर आज भी भारत ही नहीं पाकिस्तान के लोग भी यहां के लोगों पर गर्व करते हैं। यह बहुत चर्चित कस्बा है।
ये बात समझ से बाहर है कि 600 साल पुरानी इस रियासत में जहां पर सिख, हिंदू और मुसलिम आबादी अमन-चैन से रहती है, जहां कभी दंगे-फसाद नहीं हुए और वहां की सरकार ने वहां के लोगों से इसे जिला बनाने का जो वादा किया था, उसे निभाया है तो फिर इसमें दूसरे राज्य के किसी मुख्यमंत्री को आपत्ति दर्ज कराने का क्या मतलब है।
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