पंजाब कांग्रेस में चल रही सियासी जंग को ख़त्म करने के लिए कांग्रेस आलाकमान की ओर से बनाए गए पैनल ने अपनी रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौंप दी है। रिपोर्ट में बाग़ी रूख़ अख्तियार करने वाले नवजोत सिंह सिद्धू को अहम पद देने की सिफ़ारिश की गई है। सोनिया गांधी पैनल की सिफ़ारिशों को ध्यान में रखते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह को कुछ निर्देश दे सकती हैं।
पंजाब में 7 महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और उससे पहले सामने आए इस सियासी तूफ़ान को रोकने के लिए आलाकमान ने तीन सदस्यों वाले पैनल का गठन किया था। इस पैनल में वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, पंजाब मामलों के प्रभारी हरीश रावत और दिल्ली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जय प्रकाश अग्रवाल शामिल थे।
पैनल ने पंजाब कांग्रेस के कई विधायक-मंत्रियों के अलावा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ और मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से उनकी राय ली थी।
पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पंजाब में मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा नहीं की जानी चाहिए। इसके अलावा नवजोत सिंह सिद्धू को नज़रअंदाज न किए जाने और उन्हें पार्टी में अहम पद दिए जाने की भी बात पैनल ने कही है।
ख़बरों के मुताबिक़, सिद्धू अमरिंदर सिंह की कैबिनेट में उप मुख्यमंत्री या प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष का पद चाहते हैं जबकि कैप्टन इसके लिए तैयार नहीं हैं। कैप्टन सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का विरोध भी कर चुके हैं।
अमरिंदर सिंह होंगे नाराज़?
पैनल का यह कहना कि मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा नहीं की जानी चाहिए, इससे कैप्टन अमरिंदर सिंह नाराज़ हो सकते हैं। यहां ये बात भी अहम है कि 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस आलाकमान से साफ कह दिया था कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी उन्हें देनी होगी और चुनाव में उन्हें चेहरा भी बनाना होगा, उनके तेवरों के बाद आलाकमान ने प्रताप सिंह बाजवा को हटाकर कैप्टन को अध्यक्ष बनाया था और मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी। यह बाद दीगर है कि कैप्टन ने कांग्रेस को जीत दिलाई थी।
संगठन की ओवरहॉलिंग ज़रूरी
पैनल ने यह भी कहा है कि पंजाब कांग्रेस का कायापलट करने या इसकी पूरी तरह मरम्मत करने की ज़रूरत है और ऐसा एक सम्नवय समिति की निगरानी में किया जाना चाहिए जिससे पार्टी और संगठन चुनाव से पहले मिलकर चल सकें। माना जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान कैप्टन को हिदायत दे सकता है कि वे सभी को साथ लेकर चलें।
कैप्टन पर यह आरोप लगता रहा है कि वह एकला चलो की स्टाइल में काम करते हैं। इस पैनल के सामने कई विधायकों ने भी कहा था कि अमरिंदर सिंह के कामकाज का तरीक़ा तानाशाही वाला है और ज़मीन, रेत, ड्रग्स, केबल और अवैध शराब के माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
क्यों शुरू हुआ था विवाद?
सिद्धू सहित इन तमाम नेताओं की शिकायत है कि 2015 में गुरू ग्रंथ साहिब के बेअदबी मामले और कोटकपुरा गोलीकांड के दोषियों को सत्ता में आने के साढ़े चार साल बाद भी नहीं पकड़ा जा सका है। इस मामले में अमरिंदर सिंह पर आरोप है कि उन्होंने बेअदबी मामले में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उनके परिवार को बचाने की पूरी कोशिश की है और ऐसा करके जनता से धोखा किया गया है। क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने पंजाब में जनता से वादा किया था कि वह इस मामले के दोषियों को सजा दिलाएगी।
तालमेल बनाना ज़रूरी
पैनल ने रिपोर्ट तो सौंप दी है लेकिन देखना होगा कि क्या अमरिंदर सिंह सिद्धू को डिप्टी सीएम बनाने या प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने के लिए राजी होते हैं। कैप्टन ने हाल ही में आम आदमी पार्टी के तीन विधायकों को झटककर अपना पाला मजबूत किया है और दिखाया है कि उनमें सियासी दमखम बाकी है।
यह तय है कि अगर अमरिंदर बनाम सिद्धू की यह लड़ाई ख़त्म नहीं हुई तो पंजाब में कांग्रेस को जबरदस्त सियासी नुक़सान होगा। लेकिन अमरिंदर के रवैये को देखकर यह साफ है कि उनकी मंशा अपने दम पर ही कांग्रेस को राज्य में चुनाव लड़ाने की है लेकिन दूसरी ओर उनके विरोध में सिद्धू से लेकर प्रताप सिंह बाजवा समेत कई नेता लामबंद हो चुके हैं।
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