पंजाब कांग्रेस में चल रही जोरदार जंग में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को उनके सियासी विरोधियों ने घेर तो लिया है लेकिन इतना वे भी जानते हैं कि ये बूढ़ा शेर इतनी जल्दी हार नहीं मानेगा। इसके साथ ही कांग्रेस आलाकमान को भी इस बात का अंदाजा है कि अमरिंदर सिंह को नज़रअंदाज करना ख़तरे से खाली नहीं होगा।
पंजाब में 7 महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और उससे पहले खड़ा हुआ यह सियासी बवंडर हाईकमान के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है।
इस ताज़ा घमासान के कारण जब कांग्रेस आलाकमान ने तीन सदस्यों का एक पैनल बनाया तो अमरिंदर सिंह को भी दिल्ली आना पड़ा। यहां अमरिंदर सिंह ने अपने क़द के हिसाब से कमेटी से बात करने के साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मुलाक़ात की है।
कमेटी के सामने पेश होने के बाद शुक्रवार को पत्रकारों से बातचीत में अमरिंदर ने कहा कि छह महीने बाद पंजाब में चुनाव होने हैं और हमने कुछ अंदरूनी मामलों पर चर्चा की है। इससे पहले इस कमेटी ने सिद्धू सहित कई नाराज़ विधायकों और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ से भी बात की है।
पंजाब कांग्रेस में चल रही सियासी जंग के दो बड़े चेहरे हैं। पहला ख़ुद कैप्टन और दूसरे नवजोत सिंह सिद्धू। सिद्धू साढ़े चार साल पहले पार्टी में आए हैं जबकि कैप्टन सेना से रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस में लंबा वक़्त गुजार चुके हैं।
बड़ा सियासी क़द
पटियाला राजघराने से आने वाले कैप्टन राजीव गांधी के दोस्त थे। कई बार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहने के अलावा सीडब्ल्यूसी (कांग्रेस में फ़ैसले लेने वाली सबसे आला संस्था) के स्थायी आमंत्रित सदस्य रहने के साथ ही वह 9 साल से ज़्यादा वक़्त तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनकी पत्नी परनीत कौर केंद्र सरकार में मंत्री रह चुकी हैं।
अमरिंदर का स्वभाव सेना के कैप्टन जैसा ही है। यानी वह सख़्त मिजाज हैं और इस बात को क़तई सहन नहीं करेंगे कि साढ़े चार साल पहले पार्टी में आए सिद्धू उनकी सल्तनत को चुनौती दें। वह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का पुरजोर विरोध भी कर चुके हैं।
नगर निगमों की जीत
यहां बात फ़रवरी में हुए पंजाब नगर निगम चुनावों की भी करनी होगी। तब कांग्रेस को जीत दिलाने का जिम्मा अमरिंदर सिंह के कंधों पर ही था। उन्होंने साबित किया था कि वह अकेले नेता हैं जो पंजाब में कांग्रेस को जिता सकते हैं और कांग्रेस को 8 में से 7 नगर निगमों में जीत मिली थी।
2017 का वादा बना हड्डी
कैप्टन के गले की हड्डी बन गया है 2017 के विधानसभा चुनाव में जनता से किया वादा। तब कैप्टन ने हाथ में गुटका साहिब (पवित्र सिख धार्मिक पुस्तक) लेकर कहा था कि सत्ता में आने पर वह 2015 में गुरू ग्रंथ साहिब के बेअदबी मामले और कोटकपुरा गोलीकांड के दोषियों को सजा दिलवाएंगे लेकिन सत्ता में आने के साढ़े चार साल बाद भी इस मामले में कुछ नहीं हुआ है और सिद्धू ने इसे ही मुद्दा बना लिया है।
इसके अलावा ज़मीन, रेत, ड्रग्स, केबल और अवैध शराब के माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई न होने को लेकर भी विधायकों में नाराज़गी है। अमरिंदर सिंह के कामकाज के तरीक़े को लेकर भी विधायकों ने आलाकमान से शिकायत की है।
चुनौतियां ज़्यादा
किसान आंदोलन के कारण बुरी तरह अस्त-व्यस्त पंजाब में क़ानून व्यवस्था बनाए रखना बेहद कठिन काम है क्योंंकि बगल में ही पाकिस्तान है और उसकी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई सिख युवाओं को खालिस्तान की मांग को लेकर लगातार भारत के ख़िलाफ़ भड़काती रहती है। ऐसे में सरहद से लगे इस सूबे के लिए बहुत सतर्क मुख्यमंत्री चाहिए और कैप्टन इसे लेकर लगातार अलर्ट रहे हैं और केंद्र सरकार को भी करते रहे हैं।
2017 की जीत
कांग्रेस आलाकमान जानता है कि अमरिंदर की अगुवाई में ही 2017 के विधानसभा चुनाव में शिअद-बीजेपी के गठबंधन को हार मिली थी। कहा जाता है कि तब अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस आलाकमान से साफ कह दिया था कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी उन्हें देनी होगी, वरना वह कोई विपरीत क़दम उठा सकते हैं और आलाकमान ने प्रताप सिंह बाजवा को हटाकर कैप्टन को अध्यक्ष बना दिया था। कैप्टन ने आलाकमान के इस फ़ैसले को सही साबित भी करके दिखाया।
कैप्टन की उम्र भले ही 79 हो गई हो लेकिन उनकी सक्रियता में कोई कमी नहीं है। आप के तीन विधायकों को झटककर उन्होंने अपना पाला मजबूत किया है और दिखाया है कि उनमें सियासी दमखम बाकी है। अमरिंदर के रवैये को देखकर यह साफ है कि उनकी मंशा अपने दम पर ही कांग्रेस को राज्य में चुनाव लड़ाने की है और इसमें उन्हें ज़्यादा दख़लअंदाज़ी बर्दाश्त नहीं है।
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