भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 1881 में अपना मशहूर नाटक ‘अंधेर नगरी’ लिखा था। छह अंकों के इस व्यंग्य नाटक में एक ऐसे निरंकुश राजा की कहानी बतायी गयी है जो अपने ही अतार्किक फ़ैसलों से नष्ट हो जाता है। यह राजा अपराध के लिए अपराधी की तलाश में वक़्त ज़ाया न करके फंदे के आकार के हिसाब से गर्दन की तलाश करता था। जिसकी गर्दन फ़िट हो गयी, उसे फाँसी चढ़ा दिया जाता था। यही उसका ‘न्याय’ का तरीक़ा था।