सवाल किसी उद्योगपति गौतम अडानी के तमाम सरकारों को करोड़ों रुपये घूस दे कर महंगे दर पर बिजली बेचने का दीर्घकालिक अग्रीमेंट कर गरीब जनता और टैक्स पयेर्स की गाढ़ी कमाई हड़पने का नहीं है। सवाल यह भी नहीं है कि द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट संख्या (4) में वर्णित दो किस्म के भ्रष्टाचार में से एक-- कोल्युसिव (मिलकर) – किस्म के इस सिस्टमिक करप्शन की गहराई और विस्तार ने पूरे भारत की छवि दुनिया में कितनी गिराई। सवाल इसका भी नहीं है कि इतने बड़े घोटाले में कोड नेम “नुमेरो उनो” (नंबर वन) अडानी का था या नहीं या “नुमेरो उनो माइनस वन” उसकी एक कंपनी के सीईओ विनीत जैन का था या कोई और का।
सवाल तो यह है कि इतने बड़े सिस्टमिक फेल्योर, जिसका खुलासा भारत की “वाचडॉग” संस्था सेबी नहीं कर पाई लेकिन जिसे अमेरिका की एजेंसी ने पूरे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के साथ उजागर किया, उसका “नुमेरो उनो प्लस” कौन है। कैसे और किस नुमेरो उनो प्लस वन की शह पर पिछले दस वर्षों में यह उद्योगपति दिन-दूना रात चौगुना अपनी तिजोरी भरता रहा और देश–विदेश में नंबर दो की कमाई का काला-सफ़ेद करता रहा और जब एक अन्य विदेश खोजी संस्था –हिंडनबर्ग—विस्तार से इसके कुकृत्यों का राजफाश किया तो क्यों सेबी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सब ने इसकी करनी पर लगातार पर्दा डाली, इसकी रक्षा की या कुकर्मों की अनदेखी की।
लोक-प्रशासन के विद्वान् दो किस्म के भ्रष्टाचार की बात करते हैं-- शेकडाउन सिस्टम ऑफ़ करप्शन और पे-ऑफ सिस्टम ऑफ़ करप्शन। पहला प्राचीन अर्ध-शिक्षित और गरीब समाजों में होता है जैसा भारत में सन 1970 के पहले था। इसमें राज्य की शक्तियों का डर दिखा कर कमजोर जनता से भयादोहन किया जाता है जैसे चौराहे पर खड़ा सिपाही ट्रक ड्राइवर से करता है। ऐसा भ्रष्टाचार एक सख्त एसपी रातों-रात ख़त्म कर सकता है। लेकिन पे-ऑफ सिस्टम के भ्रष्टाचार में इंजीनियर और ठेकदार मिले होते हैं और शिकार आम जनता (न कि कोई एक व्यक्ति) होता है। कम सीमेंट वाला पुल 20 साल बाद गिरता है तब तक इंजीनियर प्रमोशन पा कर इंजीनियर-इन-चीफ बन चुका होता है और ठेकेदार पैसे के बल पर चुनाव जीत कर पीडब्ल्यूडी विभाग का मंत्री। ऐसा भ्रष्टाचार अगर किसी सिस्टम में घुस गया है तो वह आसानी से नहीं जाता। दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (मोइली की अध्यक्षता वाली) ने इसे कोएर्सिव (दवाब के जरिये) और कोल्युसिव (समझौते के जरिये) कहा है।
अमेरिका की सेबी जैसे लेकिन ज्यादा ताकतवर संस्था सिक्यूरिटी एक्सचेंज कमीशन अडानी के गोरख धंधे पर दो साल से नज़र रख रहा था। पिछले साल अडानी ग्रुप लोगों में से एक को अमेरिका की एजेंसियों ने होटल में रोककर उसके मोबाइल सहित सारे इलेक्ट्रॉनिक गजेट की जाँच की और लिखित सबूत जुटाए और अब दुनिया के एक समय के सबसे अमीर इस घराने पर मुक़दमा ठोका।
आखिर अपराध क्या है?
पर्यावरण प्रदूषण रोकने के लिए दुनिया के देशों पर ग्रीन एनर्जी, जैसे सौर ऊर्जा की ओर शिफ्ट करने का दबाव है। भारत में भी केंद्र और राज्य सरकारें अपने यहाँ सौर उर्जा इकाइयां लगवाना चाहती हैं। अडानी ने इसका “पोटेंशियल” (कारू का खजाना) भाँपा। तकनीकी का चरित्र होता है कि वह उत्तरोत्तर सस्ती और सहज होती जाती है। 2015 में गुजरात की सरकार ने अडानी जैसे तमाम कंपनियों से 15 रुपये प्रति यूनिट बिजली का करार किया जबकि 2020 के आते-आते कई कंपनियाँ 2-3.50 रुपये तक बिजली देने को तैयार हो गयी जिसे एक प्रश्न के उत्तर में 2021 के बजट सत्र में मंत्री ने स्वीकार किया।
कोरोना में लोग मरते रहे, अडानी घूस देता रहा
पांच राज्यों की सरकारों और अफसरों को कुल 2200 करोड़ रुपये का घूस या तो दिया जा रहा है या देना तय हुआ है ताकि वे महंगे दर पर बिजली खरीद का दीर्घकालिक समझौता कर सकें।
सन 2020 के फरवरी से कोरोना का तांडव दुनिया में शुरू हो चुका था और दिसम्बर तक सरकारी आंकड़ों के अनुसार दो लाख से ज्यादा जाने ले चुका था और 2021 में नया वायरल लाशें बिछा रहा था। डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत में मरने वालों की संख्या 50 लाख से ज्यादा थी। लेकिन अडानी और देश का राजनीतिक वर्ग और भ्रष्ट सिस्टम अडानी के साथ कोरोना की कराह पर अट्टहास करता हुए “डील” कर रहा था।
घूस का अर्थ-शास्त्र
जाहिर है आंध्र में अफसरों और नेताओं को 1750 करोड़ रुपये का घूस देने का अर्थशास्त्र समझना होगा। आंध्र ने 7000 मेगावाट बिजली खरीद का समझौता किया। अगले 20 वर्षों में टेक्नोलॉजी बेहतर होती और सौर ऊर्जा उत्पादन लागत काफी कम होती। लेकिन करार के तहत राज्यों को मजबूरन पुराने दर पर बिजली खरीदना पड़ता।
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अमेरिका का दोषी क्यों?
अमेरिका के निवेशकों को सब्ज बाग़ दिखाकर बताया गया कि कंपनी कैसे जबरदस्त फायदा करेगी लेकिन यह नहीं बताया गया कि इसके मूल में वह घूस है जो भारत के अफसरों और नेताओं को दिया गया है। यह सब निवेशकों, ऋणदाताओं को ईमेल पर या इलेक्ट्रॉनिक फुटप्रिंट के जरिये बताया गया जिसके सबूत अमेरीकी नियामक एजेंसी ने हासिल कर लिए। संवाद कोड नामों के जरिये जैसे अडानी को “नुमेरो उनो” तो उसके सीईओ को “नुमेरो उनो माइनस वन” के नाम से –संबोधित किया गया।
अब ट्रम्प का शासन है। क्या “नुमेरो उनो प्लस वन” जिनकी सरपरस्ती में अडानी फलफूल रहा है, ट्रम्प से अपने संबंधों की दुहाई दे कर इस “उद्योगपति” को बचाएंगे और “हाँ” तो उसकी कीमत भारत को कितनी चुकानी होगी।
एक प्रमुख उद्योगपति के खिलाफ अमेरिका में “इंडाइटमेंट” (अभियोग) के मूल आरोप हैं अपने ही देश के कई राज्यों के अधिकारियों को घूस दे कर सौर उर्जा क्रय का कॉन्ट्रैक्ट लेना। एक ऐसे समय में जब एआई के प्रयोग और सेमी-कंडक्टर उद्योगों को अपने यहाँ लगाने के लिए भारत दुनिया में हाथ फैला कर निमंत्रण दे रहा है, जब विदेशी पूंजी-निवेश देश की अंतरसंरचना विकास में बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है और ऐसे हालत पैदा हो रहे हैं जब चीन से मुंह मोड़ कर दुनिया की बड़ी कंपनियां भारत का रुख कर सकती हैं, गवर्नेंस की भ्रष्ट छवि गहरा और दीर्घकालिक आघात पहुंचा सकती है। इस खुलासे के बाद ऐसा लग रहा है कि भारत में राजनीतिक वर्ग और अफसरशाही की “गिद्ध-दृष्टि” उद्यमियों के उद्योग लगाने से ज्यादा उनके पैसों पर रहती है। गवर्नेंस की छवि पहले भी ख़राब रही है और हर साल की तरह इस वर्ष जनवरी में भी ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रैंकिंग के अनुसार वर्ष 2023 भारत 180 देशों में 93वें स्थान पर पाया गया यानी एक साल पहले के मुकाबले सात पायदान और नीचे। यहाँ तक कि इस इंडेक्स पर भारत दुनिया के ही नहीं एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के औसत से भी नीचे रहा।
ताज़ा घटना के बाद न केवल देश के स्टॉक मार्केट पर दुनिया के निवेशकों का भरोसा घटेगा बल्कि, भारत के निर्यात पर बुरा असर होगा। देश से निर्यातित कफ सिरप से कुछ माह पहले गाम्बिया में बच्चों की मौत का मामला डब्ल्यूएचओ ने तस्दीक किया। केंद्र व राज्य की सरकारों को सोचना होगा कि गवर्नेंस की भ्रष्ट छवि हो तो बाहर के निवेशक नए बेहतर स्थान तलाशने लगते हैं ताकि उनका पैसा कम से कम सुरक्षित रहे। शायद यही कारण है कि भारत के अधिकारियों के तमाम प्रयासों को ताइवान की प्रमुख सेमी-कंडक्टर कंपनी ने भारत का निमंत्रण ख़ारिज कर दिया। देश में भ्रष्टाचार पर गहरा प्रहार करना होगा जैसा सिंगापुर ने किया।
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