जनता पार्टी की सरकार में मची उथल-पुथल के बीच आरएसएस के प्रति निष्ठा और दोहरी सदस्यता का सवाल उठने पर जब पूर्व जनसंघ नेताओं ने 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी का गठन किया तो ‘गाँधीवादी समाजवाद’ को वैचारिक अवधारणा के रूप मे स्वीकार किया गया। बीजेपी के दस्तावेज़ों में ‘गाँधीवादी समाजवाद’ आज भी उसकी ‘पंचनिष्ठाओं’ में दर्ज है।
इसके बावजूद बीजेपी के नेता और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में विधानसभा में बहस के दौरान ‘समाजवाद’ के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला। समाजवादी पार्टी या उसकी समाजवाद के प्रति निष्ठा पर सवाल उठाना एक बात थी, लेकिन उन्होंने ‘समाजवाद’ को ही एक ‘पराये’ विचार के रूप में पेश करने की कोशिश की। उन्होंने समाजवाद के बरक्स ‘रामराज्य’ को खड़ा किया जो उनके हिसाब से ‘भारत की विरासत’ से जुड़ा है।
योगी आदित्यनाथ भूल गये कि समाजवाद भारतीय संविधान की प्रस्तावना का हिस्सा है। पूरे स्वतंत्रता आंदोलन में ‘समाजवादी भारत’ के निर्माण का लक्ष्य सबसे प्रबल था। हिंसा-अहिंसा की बहस को दकरिनार कर दें तो जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस से लेकर भगत सिंह तक भारत में समाजवाद लाने के लिए ही संघर्ष कर रहे थे। भगत सिंह ने तो अपनी पार्टी हिंदुस्तान रिपबल्किन एसोसिएशन में ‘समाजवादी’ शब्द भारी बहस के बाद जुड़वाया था। और अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद इसी ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपबल्किन एसोसिएशन’ के कमांडर थे।
भारत के आम जन के लिए रामराज्य का अर्थ हर प्रकार की कष्ट से मुक्ति है। तुलसी दास रामचरित मानस में इसे स्पष्ट करते हुए लिखते हैं-दैहिक, दैविक, भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।
यानी ‘रामराज्य’ एक ऐसे राज्य की कल्पना है जहाँ के नागरिकों को न स्वास्थ्य की समस्या होगी, न रोज़गार का संकट होगा और न ही उन्हें प्राकृतिक प्रकोप झेलना पड़ेगा। चोरी-डकैती-ठगी नहीं होगी। सभी सुरक्षित होंगे, निर्भय होंगे। और सबसे बड़ी बात कि नागरिकों में परस्पर प्रीति होगी यानी आपस में सद्भावना होगी। महात्मा गाँधी भी जब रामराज्य की बात करते हैं तो यही स्वप्न भरते हैं। ज़ाहिर है, यह ‘साध्य’ है, साधन नहीं। इस साध्य से भला किसे ऐतराज़ हो सकता है। यहाँ तक दक्षिणपंथियों से लेकर उनके धुर विरोधी वामपंथी भी अपने-अपने तरीक़े से ऐसा ही सपना दिखाते हैं। वामपंथी इस ‘साध्य’ को प्राप्त करने के लिए ‘समाजवाद’ को साधन बताते हैं तो दक्षिपंथी ‘पूँजीवाद’ को।
योगी आदित्यनाथ जब ‘रामराज्य’ को समाजवाद का जवाब बताते हैं तो वे रामराज्य को एक ‘साधन’ के रूप मे स्वीकार करते हैं। यह लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक संकेत है। राम की मर्यादा एक युगविशेष की मर्यादा थी। राम एक राजतंत्रीय शासन व्यवस्था के नायक हैं और राजतंत्र में राजा की इच्छा ही सर्वोपरि होती है न कि संविधान। राजतंत्र अपने आप में लोकतंत्र विलोम है जिसमें समता और समानता संभव नहीं है जो भारतीयों ने लंबे संघर्ष और कुर्बानियों के बाद अर्जित किया है।
“
वैसे, यह पहली बार नहीं है कि राजनीति में हाथ आज़माने आये किसी महंत ने रामराज्य को साधन के रूप में पेश किया है। योगी आदित्यनाथ की वाणी में करपात्री महाराज के स्वर सुनाई देते हैं जिन्होंने आज़ादी के तुरंत बाद 1948 में ‘अखिल भारतीय रामराज्य परिषद’ नाम का एक राजनीतिक दल का गठन किया था।
परिषद ने 1952 के पहले चुनाव में संसद की तीन सीटें जीती थीं। हिंदी क्षेत्र, मुख्य तौर पर राजस्थान में इसके कुछ विधायक भी चुने जाते रहे। यह दल संविधान के समतामूलक विचारों का घोर विरोधी था और इसका लक्ष्य ‘सनातन हिंदू वर्णाश्रम धर्मशासित राष्ट्र’ स्थापित करना था। 1971 में रामराज्य परिषद का जनसंघ में विलय हो गया था।
“
‘धर्मसम्राट’ की पदवी पाने वाले करपात्री महाराज जन्मना ऊँच-नीच की व्यवस्था के पक्षधर थे। 1954 में वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर में दलितों के प्रवेश का विरोध करने पर वह गिरफ्तार किये गये और वहीं उन्होंने 816 पेज की पुस्तक लिखी, ‘मार्क्सवाद और रामराज्य’ जिसे बाद में गीताप्रेस ने छापा। इस पुस्तक में करपात्री महाराज ने विधवा स्त्रियों को ज़िंदा जलाने वाली सती प्रथा, बाल विवाह, दास प्रथा आदि को शास्त्र-आधारित बताते हुए समर्थन किया। उन्होंने ज़मींदारी उन्मूलन का विरोध किया और ज़मीन या संपत्ति के राष्ट्रीयकरण को ‘धर्मविरुद्ध’ बताया। उन्होंने कहा कि ज़मींदार या धनी होना पूर्वजन्मों की तपस्या का फल है। अमीरी-ग़रीबी कर्मफल सिद्धांत का नतीजा है।
ज़ाहिर है, करपात्री महाराज भारत के संविधान द्वारा स्त्रियों और दलितों की मुक्ति को धर्मविरुद्ध मानते थे। अंतर्जातीय विवाह और तलाक के अधिकार से तो वे ख़ासे नाराज़ थे। उन्होंने स्पष्ट लिखा- ‘समाजवाद का अंधानुकरण करने वाली भारत सरकार तलाक का नियम बनाकर स्त्रियों को स्वाधीन करने के नाम पर उनका सर्वनाश कर रही है।’ (पेज 576)। यह भी स्पष्ट किया कि“ रामराज्य-प्रणाली मे बाल्यावस्था में ही लड़कियों की शादी हो जाएगी। पुरुषों का काम घर के बाहर होगा और स्त्रियों का घर के भीतर।”
करपात्री की इस किताब का तीखा विरोध महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने किया था। उन्होंने इसके जवाब में ‘रामराज्य और मार्क्सवाद’ पुस्तक लिखी और करपात्री के हर तर्क का जवाब दिया। उन्होंने करपात्री की रामराज्य प्रणाली को गणतंत्र के लिए ख़तरनाक क़रार दिया था।
“
योगी आदित्यनाथ समाजवाद के जवाब में जब रामराज्य का विचार रखते हैं तो वे करपात्री की ‘रामराज्य प्रणाली’ की ही वक़ालत करते हैं। करपात्री महाराज की तरह योगी आदित्यनाथ भी जिस प्राचीन काल के गौरव का गुणगान करते है उसकी विरासत से ख़ुद को जोड़ते हैं, उसमें शासन व्यवस्था राजतंत्रीय है, दास प्रथा और स्त्री दासता है और किसी नागरिक या मानवाधिकार का स्थान नहीं है।
समाजवाद उत्पादन के साधनों पर राज्य के नियंत्रण का सिद्धांत है। भारत ने कम्युनिस्ट देशों की तरह इसे शास्त्रीय स्वरूप में स्वीकार नहीं किया लेकिन मिश्रित अर्थव्यवस्था के तहत बुनियादी संरचना के लिहाज़ से अहम माने जाने वाले क्षेत्रों को सार्वजनिक क्षेत्र में ही रखा। बीजेपी का मौजूदा शासन इसे ही बरबाद करने मे जुटा है। अंधाधुंध निजीकरण और कॉरपोरेट मोनोपली इसी का नतीजा है। यह संविधान की भावना के विरुद्ध है। इस पर रामराज्य का जुमला पर्दा नहीं डाल सकता है।
योगी आदित्यनाथ के लिए अगर रामराज्य का मतलब दैहिक, दैविक और भौतिक ताप से जनता को मुक्त करना होता तो यूपी का आज ये हाल नहीं होता। यूपी देश के तीन सबसे ग़रीब प्रदेशों में न होता और न हत्या और मानवाधिकार हनन में अव्वल होता। नागरिकों में परस्पर प्रेम की जगह जिस तरह सांप्रदायिक भावनाओं को शासकीय संरक्षण मे उबाला जाता है, वह भी नहीं होता। सबसे बड़ी बात कि आक्सीजन के अभाव में हज़ारों कोरोना पीड़ित तड़प-तड़प के जान देने को मजबूर न होते।
“
योगी आदित्यनाथ का समाजवाद पर हमला ‘हिंदू राष्ट्र’ की प्रस्तावना है जिसे डॉ.आंबेडकर दलितों, पिछड़ों, स्त्रियों और लोकतंत्र के लिए विपत्ति बता गये हैं।
करपात्री महाराज लोकतंत्र को ‘मुंडी गणना’ बताते हुए कहते थे कि शासन को ‘धर्मनियंत्रित’ होना चाहिए। उन्होंने चेताया था कि बहुमत को ‘धर्म के विशेषज्ञों’ को चुनौती देने का साहस नहीं करना चाहिए। योगी आदित्यनाथ की ‘रामराज्य बनाम समाजवाद’ बहस उसी चेतावनी का दोहराव है। (लेखक कांग्रेस से जुड़े हैं)
अपनी राय बतायें