मध्य-मार्च माह में कोरोना मुँह बाये निगलने को खड़ा था। लेकिन देश की संसद चार में से तीन विश्वविद्यालयों को संस्कृत विश्वविद्यालय बनाने को मंजूरी दे रही थी। शिक्षा मंत्री बता रहे थे कि ‘संस्कृत भाषा नहीं संस्कृति है जो हमें अपनी जड़ों तक पहुँचाती है’। कोरोना वायरस को शायद यह पता नहीं था। अगले चार दिन में प्रधानमंत्री ने जब ‘थाली-घंटा’ का अभिनव प्रयोग किया तो कुछ स्व-नियुक्त भारतीय ‘संस्कृति’ के पुरोधाओं को इल्हाम हुआ— ‘थाली-घंटे के डेसिबल (ध्वनि-तीव्रता) से वायरस भाग जाता है’। खैर, बेशर्म कोरोना नाफ़रमानी का मुज़ाहिरा करते हुए आज रोज़ाना 50,000 लोगों को रोगी बनाने लगा।