मध्य-मार्च माह में कोरोना मुँह बाये निगलने को खड़ा था। लेकिन देश की संसद चार में से तीन विश्वविद्यालयों को संस्कृत विश्वविद्यालय बनाने को मंजूरी दे रही थी। शिक्षा मंत्री बता रहे थे कि ‘संस्कृत भाषा नहीं संस्कृति है जो हमें अपनी जड़ों तक पहुँचाती है’। कोरोना वायरस को शायद यह पता नहीं था। अगले चार दिन में प्रधानमंत्री ने जब ‘थाली-घंटा’ का अभिनव प्रयोग किया तो कुछ स्व-नियुक्त भारतीय ‘संस्कृति’ के पुरोधाओं को इल्हाम हुआ— ‘थाली-घंटे के डेसिबल (ध्वनि-तीव्रता) से वायरस भाग जाता है’। खैर, बेशर्म कोरोना नाफ़रमानी का मुज़ाहिरा करते हुए आज रोज़ाना 50,000 लोगों को रोगी बनाने लगा।
पापड़ से कोरोना का इलाज?; देश किस दिशा में जा रहा है?
- विचार
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- 28 Jul, 2020

अगर संस्कृत के ज्ञान से भारतीय प्राचीन औषधि विज्ञान को समझा जा सकता है और प्रकृति से संश्लेषण का नया दृष्टिकोण मिल सकता है तो दुनिया के लिए यह प्रकाश-स्तम्भ बन सकता है। लेकिन तार्किक सोच पर अंकुश लगा कर यानी पापड़ से कोरोना का इलाज करवा कर हम देश की गत्यात्मक सोच को जड़वत करेंगे और तब कोई भाभा, जगदीश चन्द्र बोस पैदा नहीं होगा।
प्रधानमंत्री ने अबकी बार ‘आत्म-निर्भर भारत’ का नारा दिया। इसे परिभाषित करते हुए उन्होंने आगे बताया कि इसका मतलब उत्पादन, कौशल और विनिर्माण में किसी का मोहताज़ नहीं होना और साथ ही निर्यातोन्मुख उत्पादन में भी अग्रणी होना है। लेकिन अगले ही क्षण पता चला कि आत्म-निर्भरता के लिए शायद भव्य राम मंदिर का शिलान्यास इस संकट के काल में कराना ज़रूरी है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बिगड़ती क़ानून व्यवस्था और बढ़ते महामारी-संकट को भूल व्यवस्था में लग गए। इस कार्यक्रम का दूरदर्शन टेलीकास्ट करेगा और दुनिया देखेगी भारत की सांस्कृतिक समृद्धि।