क्या किसी विपक्षी दल की सरकार का कोई मंत्री या देश का सामान्य नागरिक प्रधानमंत्री द्वारा किसी विषय पर विचार व्यक्त किए जाने को यह कहते हुए चुनौती दे सकता है कि ऐसा करने के लिए उनके पास अपेक्षित विशेषज्ञता या शैक्षणिक डिग्रियाँ नहीं हैं? क्या सर्वोच्च अदालत को उन विषयों पर राय देने का अधिकार नहीं है जिनका लिखित उल्लेख संविधान में नहीं है या जो केवल विधायिका के ही अधिकार क्षेत्र में आते हैं?
क्या पीएम को आर्थिक मुद्दों पर बोलना चाहिए?
- विचार
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- 29 Mar, 2025

हाल में तमिलनाडु के वित्त मंत्री पलानिवेल त्याग राजन ने सवाल किया कि वह आख़िर प्रधानमंत्री की अर्थव्यवस्था पर टिप्पणी को क्यों सुनें, क्या उन्होंने इसमें विशेषज्ञता हासिल की है या काम कुछ ऐसा किया है? उनका सवाल कितना वाजिब है?
एक राष्ट्रीय टीवी चैनल पर पिछले दिनों डिबेट के दौरान तमिलनाडु के वित्त मंत्री पलानिवेल त्याग राजन (पीटीआर) ने प्रधानमंत्री के वैचारिक अधिकार-क्षेत्र और उनकी आर्थिक उपलब्धियों को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए। चूँकि मामला दक्षिण के एक ग़ैर-हिंदी भाषी राज्य के मंत्री से जुड़ा था और बहस अंग्रेज़ी के चैनल पर थी, हिंदी पट्टी का उस पर ज़्यादा ध्यान नहीं गया। भाजपा के मीडिया सेल सहित हिंदी के गोदी चैनलों द्वारा भी या तो विषय को बहस के योग्य नहीं समझा गया या जान-बूझकर नज़रअंदाज़ कर दिया गया। हिंदी-भाषी राज्य की किसी विपक्षी सरकार का कोई वित्त मंत्री अगर प्रधानमंत्री की आर्थिक-विशेषज्ञता को लेकर सवाल करता तो अभी तक बवाल मच चुका होता।