विकास दुबे की पुलिस 'मुठभेड़' में हत्या, एक बार फिर से गैर न्यायिक हत्याओं की वैधता पर सवाल उठाती है जिसका अक़सर भारतीय पुलिस द्वारा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। जैसे कि महाराष्ट्र पुलिस द्वारा मुंबई अंडर वर्ल्ड से निपटने के लिए, खालिस्तान की मांग करने वाले सिखों के खिलाफ पंजाब पुलिस द्वारा और 2017 में योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद यू.पी पुलिस द्वारा आदि। यह सभी देश भर में गैर न्यायिक हत्याओं के व्यापक रूप से इस्तेमाल का उदाहरण हैं।
सुप्रीम कोर्ट- “फ़र्ज़ी एनकाउंटर करने वालों का फाँसी का फंदा इंतज़ार कर रहा है”
- विचार
- |
- जस्टिस मार्कंडेय काटजू
- |
- 11 Jul, 2020


जस्टिस मार्कंडेय काटजू
'फेक एनकाउंटर' में सभी कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार किया जाता है और बिना मुक़दमा चलाये अभियुक्त को मार दिया जाता है। इसलिए यह पूरी तरह से असंवैधानिक है। विकास दुबे की मौत से यह स्पष्ट है कि 'मुठभेड़' नकली थी। विकास दुबे हिरासत में था और वह निहत्था था। ऐसे में वास्तविक मुठभेड़ कैसे हो सकती थी?
सच्चाई यह है कि इस तरह के 'एनकाउंटर’ वास्तव में, पुलिस द्वारा की गयी सोची-समझी पूर्व निर्धारित हत्याएँ हैं।
जस्टिस मार्कंडेय काटजू
जस्टिस मार्कंडेय काटजू भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश हैं।