श्रीमती शीला दीक्षित बीमार थीं और काफ़ी कमजोर भी हो गई थीं। लेकिन ऐसी संभावना नहीं थी कि वह अचानक हमारे बीच से महाप्रयाण कर जाएँगी। अख़बारों और टीवी चैनलों ने जिस तरह की भाव-भीनी विदाई उन्हें दी है, वह बहुत कम नेताओं को दी जाती है। जब वह पहली बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं तब और अब भी जो नेता उनका डटकर विरोध करते रहे हैं, उन्होंने भी उन्हें भीगे हुए नेत्रों से अलविदा कहा। सभी मानते हैं कि आज दिल्ली का जो भव्य रुप है, उसका श्रेय शीला जी को ही जाता है। सभी लोग उन्हें मेट्रो रेल, सड़कों, पुलों, नई-नई बस्तियों और भव्य भवनों के निर्माण का श्रेय दे रहे हैं। लेकिन मैं मानता हूँ कि यदि शीला जी को मौक़ा मिलता तो वह भारत की उत्तम प्रधानमंत्री भी सिद्ध होतीं।