प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में गंगा किनारे स्थित राजघाट परिसर में सर्व सेवा संघ और गांधी अध्ययन संस्थान पर क़ब्ज़े के लिए जब भगवा हुकूमत का पुलिसिया प्रशासन विध्वंस मचा रहा था तो मुझे उस क्षण की पीड़ा को महसूस करने के लिए वहाँ मौजूद रहना चाहिए था। इसलिए नहीं कि मैं उसे रोक सकता था बल्कि इस कारण कि अपने अतीत का स्मरण करते हुए मुझे उस कालिख का साक्षी बनना चाहिए था जो देश-दुनिया में गांधी-विनोबा के लाखों-करोड़ों अनुयाइयों के चेहरों पर सरकारी अतिक्रमणकारियों द्वारा गढ़े गए दस्तावेज़ों की मदद से पोती जा रही थी।
संस्थाओं को बचाना है? पहले गांधी को बचाइए!
- विचार
- |
- |
- 29 Mar, 2025

वाराणसी में सर्व सेवा संघ और गांधी अध्ययन संस्थान को लेकर आख़िर क्या विवाद है? इसकी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश कौन कर रहा है? जानिए, इसे बचाने का तरीका क्या हो सकता है।
वाराणसी के राजघाट परिसर के साथ स्मृतियों का एक लंबा सिलसिला जुड़ा हुआ है। साठ और सत्तर के दशकों में गांधी-विनोबा-कस्तूरबा का काम करने के दौरान कभी इंदौर से तो कभी नई दिल्ली स्थित राजघाट कॉलोनी से ट्रेन से रात-रात भर बैठे-बैठे सफ़र करके वहाँ जाने और समय बिताने का अवसर प्राप्त हुआ है। वहाँ आयोजित होने वाले शिविरों में कई दिनों तक रहने और सर्वोदय दर्शन की राष्ट्रीय विभूतियों का सान्निध्य प्राप्त करने के दुर्लभ क्षण प्राप्त होते थे। बापू के अनन्यतम सहयोगी महादेव भाई देसाई के सुयोग्य पुत्र और गांधी के कथाकार-विचारक नारायण देसाई तब उसी परिसर में परिवार सहित निवास करते थे। उनके साथ बिताये गए समय और की गई रोमांचक गंगा यात्रा के दृश्य आज भी यादों में सुरक्षित हैं।