यूक्रेन और रूस की लड़ाई को शुरू हुए सात महीने होने जा रहे हैं। लड़ाई के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से रूस की निंदा हो रही है। पर राष्ट्रपति पुतिन ने देशवासियों को संबोधित करते हुए आंशिक रूप से सेना जुटाने और यूक्रेन के उन पूर्वी प्रांतों में क्रीमिया जैसा जनमत संग्रह कराने का ऐलान किया है जो रूस के क़ब्ज़े में हैं। लड़ाई चार मोर्चों पर चल रही है। जंग के मैदान में, आर्थिक मोर्चे पर, कूटनीति के मोर्चे पर और जनसमर्थन और प्रचार के मोर्चे पर। आरंभ के सप्ताहों में लगभग हर मोर्चे पर मुँह की खाने के बाद ऐसा लगने लगा था मानो राष्ट्रपति पुतिन की रणनीति काम कर रही है। यूक्रेन की राजधानी कीव के घेराव की कोशिश में नाकाम होने के बाद रूसी सेना ने पूर्व में डोनबास और दक्षिण में मारियूपूल, मेलितोपोल और खरसोन प्रान्तों में प्रवेश करते हुए यूक्रेन के लगभग पाँचवें हिस्से पर क़ब्ज़ा कर लिया।
क्या यूक्रेन की लड़ाई हार रहे हैं पुतिन?
- विचार
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- 21 Sep, 2022

यूक्रेन का कहना है कि उसकी सेनाओं ने देश के दूसरे सबसे बड़े शहर ख़ारकीव के पूर्वोत्तर के इलाके से और दक्षिण में खरसोन शहर के आसपास से रूसी सेना को खदेड़ कर लगभग आठ हज़ार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को रूसी सेना के पंजे से छुड़ा लिया है।
आर्थिक प्रतिबंधों के ऐलान के आरंभिक दिनों में झटका खाने के बाद रूसी मुद्रा रूबल की क़ीमत में उछाल आया क्योंकि कोयला, तेल और गैस की क़ीमतों में आए उछाल से रूस की आमदनी में भी बढ़ोतरी हुई। यूरोप के प्रतिबंधों से हुए नुक़सान की भरपाई रूस ने चीन और भारत को सस्ती दरों पर तेल और उर्वरक बेच कर कर ली।
बड़ी संख्या में रूसी सैनिकों के मारे जाने और मारियूपोल की बमबारी और बूचा के नरसंहार से हुई बदनामी के बावजूद लड़ाई के प्रति रूसी जनसमर्थन कायम रहा।