18वीं लोकसभा के लिए चुनावी बिगुल बज चुका है। सात चरणों में होने वाले इस चुनाव का नतीजा 4 जून को आएगा। संविधान बदलने की मुनादी के बीच भाजपा के साथ उसके पितृ संगठन आरएसएस की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है। गांधीजी की हत्या के समय आरएसएस पर लगे प्रतिबंध को इस शर्त के साथ गृहमंत्री सरदार पटेल ने हटाया था कि वह कभी राजनीति में हिस्सेदारी नहीं करेगा। लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है कि बीजेपी के मुखौटे में आरएसएस ही सत्ता पर विराजमान है। सवाल उठता है कि हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के उद्देश्य से बना यह संगठन भारत की लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राजनीति की कमजोरियों का फायदा उठाकर कैसे इतना ताक़तवर बन बैठा? क्योंकर आरएसएस ने 90 साल के स्वाधीनता आंदोलन से उपजे 'भारत के विचार' को सिर के बल खड़ा कर दिया?