राष्ट्रपिता की एक बार फिर हत्या की जा रही है। पहले उनके शरीर का नाश किया गया। फिर उनके आश्रमों और उनकी स्मृतियों से जुड़े प्रतीकों पर हमला किया गया। अब उन्हें मुग़लों के साथ-साथ इतिहास और पाठ्यपुस्तकों से या तो बाहर किया जा रहा है या फिर उनकी हत्या और उनके हत्यारों से जुड़े संदर्भों को सत्ता की ज़रूरतों के मुताबिक़ संशोधित किया जा रहा है। मानकर चला जा रहा है कि ऐसा निर्विरोध कर दिए जाने के बाद गांधी की समाज से वैचारिक, आध्यात्मिक और नैतिक उपस्थिति पूरी तरह ख़त्म कर दी जाएगी !