सभी धर्मों व विश्वास के मानने वाले वैसे तो अपने परिवार द्वारा संस्कारित व पैतृक विरासत में प्राप्त होने वाले अपने अपने धर्मों-विश्वासों-परंपराओं व रीति रिवाजों का ही अनुसरण करते हैं व उसी धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ बताते हैं। सभी कहते हैं कि उन्हीं का धर्म, विश्वास व पंथ मानवता, दया, करुणा, परोपकार, प्रेम, सहृदयता, सेवा व सत्कार जैसे अनेकानेक गुणों का मार्ग दिखाता है। और निश्चित रूप से प्रत्येक धर्मों में अनेकानेक ऐसे धर्मगुरु भी हुए हैं और अब भी हैं जो धर्म की अच्छाइयों को प्रचारित प्रसारित कर एक अच्छा, मानवतावादी, सज्जन व धर्मभीरु धर्मावलंबी तैयार भी करते हैं।
धर्म प्रेम व धर्मांधता में अंतर ज़रूरी
- विचार
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- 9 Jan, 2022

धार्मिक आधार पर नफरत और लिंचिंग जैसे मामले क्यों आते हैं? क्या यह किसी भी रूप में धर्म प्रेम हो सकता है? क्या यह धर्मांधता नहीं है?
किसी भी धर्म के लोग जब अपने अपने धर्म की विशेषतायें बयान करते हैं उस समय वे अपने ही धर्म गुरुओं अथवा पंथ के महापुरुषों के जीवन से जुड़े प्रायः ऐसे उदाहरण पेश करते हैं जिनमें मानवता व सदगुणों के दर्शन होते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि राम-बुद्ध-ईसा-मोहम्मद-नानक-महावीर आदि विभिन्न धर्मों से संबंधित इन या इन जैसे अनेक महापुरुषों ने धरती पर अपने अपने काल व समय में अपनी जीवन शैली, अपनी वाणी तथा अपने विचारों व कारगुज़ारियों से ऐसा प्रभाव छोड़ा जो आज उनके अनुयाइयों द्वारा अपनाये जाने वाले धर्मों-पंथों व विश्वासों के रूप में दिखाई भी दे रहा है।