“वे बहादुर लोगों की तरह शांत और संकट के सामने अविचलित रहे। उन्हें क्या लग रहा था कि मैं नहीं जानता, पर मेरी भावनाएँ मुझे मालूम थीं। एक क्षण के लिए मेरा ख़ून खौल उठा, मैं अहिंसा मानो भूल गया- पर एक क्षण के लिए ही। उस महान नेता का स्मरण जो कि ईश्वर की कृपा से हमें विजय की ओर ले जाने के लिए भेजा गया है, मुझे आया, और मैंने देखा कि जो किसान मेरे साथ खड़े हैं या बैठे हैं वे कम उत्तेजित हैं, अधिक शांत हैं, मुझसे भी अधिक और कमज़ोरी का क्षण दूर हो गया। मैंने उनसे अहिंसा के बारे में अत्यंत विनम्रता से बोला- मैं, जिसे ख़ुद इसका पाठ उनसे भी अधिक ज़रूरी था- और वे मुझे ध्यान से सुनते रहे और शांति से बिखर गये। नदी के उस पार, ज़रूर आदमी मरे पड़े था या मर रहे थे। वैसी ही यह भीड़ थी, वैसा ही उनका मक़सद था। फिर भी उन्होंने अपने दिल का ख़ून बहा दिया, तिलबिला होने के पहले ही।”