“वे बहादुर लोगों की तरह शांत और संकट के सामने अविचलित रहे। उन्हें क्या लग रहा था कि मैं नहीं जानता, पर मेरी भावनाएँ मुझे मालूम थीं। एक क्षण के लिए मेरा ख़ून खौल उठा, मैं अहिंसा मानो भूल गया- पर एक क्षण के लिए ही। उस महान नेता का स्मरण जो कि ईश्वर की कृपा से हमें विजय की ओर ले जाने के लिए भेजा गया है, मुझे आया, और मैंने देखा कि जो किसान मेरे साथ खड़े हैं या बैठे हैं वे कम उत्तेजित हैं, अधिक शांत हैं, मुझसे भी अधिक और कमज़ोरी का क्षण दूर हो गया। मैंने उनसे अहिंसा के बारे में अत्यंत विनम्रता से बोला- मैं, जिसे ख़ुद इसका पाठ उनसे भी अधिक ज़रूरी था- और वे मुझे ध्यान से सुनते रहे और शांति से बिखर गये। नदी के उस पार, ज़रूर आदमी मरे पड़े था या मर रहे थे। वैसी ही यह भीड़ थी, वैसा ही उनका मक़सद था। फिर भी उन्होंने अपने दिल का ख़ून बहा दिया, तिलबिला होने के पहले ही।”
राहुल और रायबरेली के रिश्ते की बुनियाद में शहीदों का ख़ून शामिल है!
- विचार
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- 3 May, 2024

राहुल गांधी ने इस बार लोकसभा चुनाव के लिए अमेठी को छोड़कर रायबरेली को क्यों चुना? आख़िर रायबरेली से कांग्रेस का ऐसा क्या संबंध रहा है कि राहुल विपक्ष के हमलों का ख़तरा उठाकर वहाँ चले गए?
-जवाहरलाल नेहरू-“ द रायबरेली ट्रैजडी” द इंडिपेंडेंट, 22 जनवरी, 1921
नेहरू जी की यह रिपोर्ट 7 जनवरी 1921 की उस घटना के बारे में है जिसे गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने अख़बार प्रताप में दूसरा जलियाँवाला बाग़ कांड कहा था। यह रायबरेली का मुंशीगंज गोलीकांड था। शहर से सट कर बहने वाली सई नदी के पुल पर अंग्रेजों के गुर्गे ज़मींदार वीर पाल सिंह के सिपाहियों ने आंदोलनकारी किसानों को भून दिया था। दर्जनों किसान शहीद हुए थे। सई का पानी लाल हो गया था। असहयोग आंदोलन की पूर्वपीठिका बतौर अवध का किसान आंदोलन बाबा रामचंदर और मदारी पासी जैसे जननायकों के नेतृत्व में लंदन तक को हिला रहा था। तमाम किसान इलाहाबाद में मोतीलाल नेहरू से मिले थे और उन्होंने अपने विलायत पटल बेटे जवाहर को उन्हें सौंप दिया था। रायबरेली, प्रतापगढ़ सहित आसपास के तमाम ज़िलों में ज़मींदारों के अत्याचार के ख़िलाफ़ चल रहा ये आंदोलन जवाहरलाल नेहरू की राजनीतिक दीक्षाभूमि बनी। वे जाड़ा, गर्मी और बरसात की परवाह किये बिना गाँव-गाँव पैदल घूम रहे थे और उनके मन में आज़ाद भारत में ज़मींदारी उन्मूलन का विचार घर करता जा रहा था।