इसलाम धर्म में 'नमाज़' उस इबादत का नाम है जिसे प्रत्येक वयस्क मुसलमान के लिये अनिवार्य माना गया है। नमाज़ के लिये पांच वक़्त विशेषकर निर्धारित किये गये हैं। पहली नमाज़ सूर्योदय से पूर्व पढ़ी जाती है जिसे ‘फ़जिर’ की नमाज़ कहते हैं। दूसरी अपराह्न में पढ़ी जाने वाली ‘ज़ोहर’ की नमाज़ कहलाती है। इसके कुछ ही देर बाद सायंकाल से पूर्व ‘अस्र’ की नमाज़ फिर सूर्यास्त के समय ‘मग़रिब’ और सूर्यास्त के कुछ देर बाद ‘ईशा’ की नमाज़ अदा करने का समय होता है।
धार्मिक आस्था के ये दुश्मन
- विचार
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- 6 Nov, 2021

हमारे देश में सभी मजहबों, जाति-धर्मों के लोग मिलजुलकर रहते आ रहे हैं। लेकिन कुछ लोग जबरन माहौल को ख़राब करने पर आमादा हैं।
शुक्रवार को ‘ज़ोहर’ के वक़्त पढ़ी जाने वाली साप्ताहिक नमाज़ की विशेष अहमियत होने के चलते प्रायः इसमें तुलनात्मक दृष्टि से ज़्यादा नमाज़ी इकट्ठे होते हैं।
आम तौर से जुमे की नमाज़ या ईद व बक़रीद जैसी वार्षिक नमाज़ों के वक़्त नमाज़ अदा करने वालों की तादाद इतनी हो जाती है कि मसजिद परिसर में वह नहीं समा पाती, लिहाज़ा मसजिदों या ईदगाहों के बाहर इन नमाज़ियों को अपने मुसल्ले बिछाने पड़ते हैं। फिर चाहे वह सड़क हो पार्क हो, कोई गली कूचा या सरकारी अथवा किसी का निजी प्लॉट।