इस सप्ताह कर्नाटक और गोवा में जो कुछ हो रहा है, उसने सारे देश को वेदांती बना दिया है। वेदांत की प्रसिद्ध उक्ति है- ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या- यानी ब्रह्म ही सत्य है, यह जगत तो मिथ्या है। दूसरे शब्दों में सत्ता ही सत्य है, राजनीति मिथ्या है। सत्ता ही ब्रह्म है, बाक़ी सब सपना है। राजनीति, विचारधारा, सिद्धांत, परंपरा, निष्ठा सब कुछ मिथ्या है।
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कर्नाटक और गोवा के कांग्रेसी विधायकों ने अपनी पार्टी छोड़ने की घोषणा क्यों की है? क्या अपने केंद्रीय या प्रांतीय नेतृत्व से उनका कोई मतभेद था? क्या वह वर्तमान सरकारों से कोई बेहतर सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं? क्या उनकी पार्टियों ने कोई भयंकर भ्रष्ट आचरण किया है? ऐसा कुछ नहीं है। जो है, सो एक ही बात है कि इन विधायकों पर मंत्री बनने का भूत सवार हो गया है। तुमने हमें मंत्री क्यों नहीं बनाया? अब हम तुम्हें सत्ता में नहीं रहने देंगे। हम मंत्री बनें या न बनें, तुमको तो हम सत्ता में नहीं ही रहने देंगे। हमें पुरस्कार मिले या न मिले, तुम्हें हम सजा ज़रूर दिलवा देंगे। यह तो कथा हुई कर्नाटक की।
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गोवा के 10 कांग्रेस विधायक इसलिए बीजेपी में शामिल हो गए कि उनमें से दो-तीन को तो मंत्रिपद मिल ही जाएगा, बाकी के विधायक सत्तारुढ़ दल के सदस्य होने के नाते माल-मलाई पर हाथ साफ़ करते रहेंगे। दल-बदल क़ानून उनके विरुद्ध लागू नहीं होगा, क्योंकि उनकी संख्या दो-तिहाई से ज़्यादा है, 15 में से 10।
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यह तो हुई कांग्रेसी विधायकों की लीला लेकिन जरा बीजेपी का भी रवैया देखिए! कर्नाटक में उसे अपनी सरकार बनानी है, क्योंकि लोकसभा की 28 में से 25 सीटें जीतकर उसने अपना झंडा गाड़ दिया है। उसे इस बात की परवाह नहीं है कि देश भर में उसकी छवि क्या बनेगी? आरोप है कि हर इस्तीफे़बाज़ विधायक को 40 करोड़ से 100 करोड़ रुपये तक दिए गए हैं। यह आरोप निराधार हो सकता है लेकिन इस्तीफ़ा देने वाले विधायक आख़िर इतनी बड़ी कुर्बानी क्यों कर रहे हैं? उन पर तो दल-बदल क़ानून लागू होगा, क्योंकि उनकी संख्या एक-चौथाई भी नहीं है। ज़ाहिर है कि वे कहीं के नहीं रहेंगे। दुबारा चुनाव लड़ने पर उनकी जीत का भी कोई भरोसा नहीं है।
कर्नाटक के मामले में सबसे रोचक रवैया कांग्रेस और जनता दल का है। वे इन विधायकों के इस्तीफ़े ही स्वीकार नहीं होने दे रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बावजूद विधानसभा अध्यक्ष जैसी पलटियाँ खा रहे हैं, उनसे उनका यह पद ही मजाक का विषय बन गया है।
कर्नाटक और गोवा ने भारतीय राजनीति की मिट्टी पलीत करके रख दी है। अब संसद को एक नया दल-बदल क़ानून बनाना होगा। वह यह कि अब किसी भी पार्टी के विधायक और सांसद, उनकी संख्या चाहे जितनी भी हो, यदि वे दल-बदल करेंगे तो उन्हें इस्तीफ़ा देना होगा। दलों को भी अपना आतंरिक क़ानून बनाना चाहिए कि जो भी सांसद या विधायक दल बदलकर नई पार्टी में जाना चाहे, उसे उस पार्टी में प्रवेश के लिए कम से कम एक साल प्रतीक्षा करनी होगी।
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)
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