प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म का पाठ पढ़ाया था। एक और प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह ने अपनी शालीन चुप्पी से गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को तब असरदार पाठ पढ़ाया था जब अहमदाबाद की चुनावी रैली के दौरान उनकी सुरक्षा में सेंध लगी थी।
वक्ता बदला। जगह बदल गयी। जो सीएम थे, पीएम हो गये। प्रदेश गुजरात न होकर पंजाब हो गया। फिरोजपुर की रैली के दौरान जो कुछ हुआ और उस पर जिस तरह की प्रतिक्रिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी, उससे साबित यही हुआ कि नरेंद्र मोदी पर न राजधर्म की सीख का असर जिन्दा है, न ही मनमोहनी चुप्पी का मर्म ही वे याद रख पाए हैं। एक दलित व सिख कांग्रेसी मुख्यमंत्री पर ऐसी उंगली उठायी कि मर्यादा सिखाने वाले होते तो वे भी शर्मा जाते।
मनमोहन ने दी थी माफी
बात 2009 की है। प्रधानमंत्री थे डॉ मनमोहन सिंह। वे गुजरात में थे। शहर अहमदाबाद था। चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे। एक युवक ने उनकी ओर जूता उछाल दिया। हंगामा बरप गया। प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध! मगर, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने युवक को माफ कर दिया। प्रशासन से आग्रह किया कि कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाई जाए।
अब बात 2022 की। प्रधानमंत्री हैं नरेंद्र मोदी। 5 जनवरी को वे पंजाब में थे। फिरोजपुर के रास्ते में थे। चुनावी रैली के लिए पहुंचना था। मौसम खराब था। लिहाजा वैकल्पिक सड़क मार्ग चुना, मगर किसानों के व्यापक विरोध के बीच मौसम यहां भी प्रतिकूल हो चुका था। 20 मिनट पीएम का काफिला फंसा रहा। सुरक्षा में बड़ी चूक! (सेंध नहीं)
बहरहाल अनहोनी नहीं हुई। अब ‘थैंक्स गॉड’ कहना था, मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘थैंक्स चन्नी’ कहलवा भेजा। तरीका कुछ ऐसा था- "अपने सीएम को धन्यवाद कहना कि मैं बठिंडा एयरपोर्ट तक जिंदा लौट आया।”
उपरोक्त दोनों घटनाएं तुलना करने योग्य हैं। दोनों घटनाओं से नरेंद्र मोदी जुड़े हुए हैं। 2009 में वे गुजरात के सीएम थे और अब वे बीते 7 वर्षों से देश के पीएम हैं। कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
- क्या तत्कालीन पीएम डॉ मनमोहन सिंह ने गुजरात के तत्कालीन सीएम (जो अब पीएम हैं) से इतना बुरा बर्ताव किया था जैसा कि वर्तमान पीएम ने पंजाब के वर्तमान सीएम के साथ किया है?
- क्या यह देश के संघीय ढांचे को तोड़ने वाली बात नहीं है जिसमें एक मुख्यमंत्री पर खुद प्रधानमंत्री शक कर रहे हैं?
- पीएम के बाद जिस तरह से उनकी कैबिनेट और पार्टी बीजेपी ने कांग्रेस व गांधी परिवार पर हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया है, क्या वह मुनासिब है?
- क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का व्यवहार एक दलित पंजाबी मुख्यमंत्री के लिए यही होना चाहिए और यह पंजाब का अपमान नहीं है?
चुनाव के समय बढ़ जाती है सुरक्षा में सेंध की घटनाएं
प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक की ऐसी अनगिनत घटनाएं हैं जो खुद नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते हुए घटी हैं लेकिन पीएम मोदी से कभी ऐसा व्यवहार देखने को नहीं मिला था। क्या यह आंदोलनकारी किसानों से खीज का नतीजा है? या फिर किसी अन्य राजनीतिक नफा-नुकसान को देखकर पीएम मोदी ने ऐसा व्यवहार दिखलाया है? या फिर यह अपनी जान को खतरे में देख एक प्रधानमंत्री का वाजिब गुस्सा है?
इन घटनाओं पर गौर कीजिए जिन पर कभी पीएम मोदी ने गंभीर प्रतिक्रिया नहीं दिखलाई :
- 7 नवंबर 2014 : देवेंद्र फडणवीस सरकार के शपथग्रहण समारोह के दौरान पीएम मोदी भी मौजूद थे। सुरक्षा घेरे को तोड़ते हुए अनिल मिश्रा नामक युवक मंच पर चढ़ गया। फिर उसने देवेंद्र फडणवीस और पीएम मोदी दोनों के साथ सेल्फी ली।
- 25 दिसंबर 2017 : पीएम मोदी नोएडा दौरे पर थे। काफिला गलत रास्ते मुड़ गया और महामाया फ्लाई ओवर की ट्रैफिक में दो मिनट तक पीएम फंसे रहे।
- 26 मई 2018 : पश्चिम बंगाल के बोलपुर में दीक्षांत समारोह के दौरान एक युवक मंच तक आ पहुंचा और प्रधानमंत्री के पैर छू लिए।
- 2 फरवरी 2019 : पश्चिम बंगाल में अशोक नगर विधानसभा चुनाव में रैली के दौरान भगदड़ मच गयी। प्रधानमंत्री को 20 मिनट पहले ही भाषण छोड़कर रवाना होना पड़ा।
उपरोक्त सभी घटनाओं में प्रधानमंत्री का सुरक्षा घेरा टूटा है। इन घटनाओं में क्यों प्रधानमंत्री को कभी ऐसा नहीं लगा कि वे बाल-बाल बच गये हैं? क्यों उन्होंने किसी मुख्यमंत्री की ओर उंगली उस तरह से नहीं उठायी जैसे इस वक्त पंजाब के मुख्यमंत्री की ओर उठा रहे हैं?
पीएम की सुरक्षा में सेंध की उल्लिखित घटनाओं में दो सेल्फी लेने और पैर छूने की हैं। लेकिन, क्या इसलिए ये कम महत्व की हो जाती हैं? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश में महात्मा गांधी और राजीव गांधी दोनों की हत्याएं उनके पैर छूने के बाद ही की गयी थी। गांधीजी सुरक्षा नहीं लेते थे। मगर, राजीव गांधी तो पूर्व प्रधानमंत्री थे और उनके पास कमांडो सुरक्षा थी। कहते हैं इंदिरा गांधी को भी गोली मारने वाले अंगरक्षकों ने पहले उन्हें प्रणाम किया था।
उल्लेखनीय यह भी है कि ऊपर उल्लिखित चार में से तीन घटनाएं आम चुनाव और पश्चिम बंगाल में चुनाव की पृष्ठभूमि में घटी थीं। इससे एक बात तो साफ है कि चुनाव आने पर सचमुच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा को ख़तरा पैदा हो जाता है। इस लिहाज से प्रतिकूल स्थिति में वैकल्पिक प्लान और अधिक मजबूत होने चाहिए थे। क्या पंजाब में ऐसा दिखा?
पंजाब में फिरोजपुर की रैली रद्द करना बेहतर विकल्प हो सकता था। खासकर लंबे चले किसान आंदोलन के दौरान जिस तरह से 26 जनवरी को लालकिले की घटना घटी थी और पूरा गृहमंत्रालय लाचार था, उसे देखते हुए यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि पंजाब पुलिस सड़क से किसानों को हटाने में सफल हो ही लेती।
हरियाणा के मुख्यमंत्री एमएल खट्टर खुद अपने प्रदेश में रैली नहीं कर पाए और उन्हें अपना कार्यक्रम किसानों के विरोध की वजह से रद्द करने पड़े थे। यूपी के लखीमपुर में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का कार्यक्रम नहीं हुआ था और वहां ट्रैक्टर से किसानों को कुचलने की घटना घटी।
किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में पीएम की सुरक्षा में लगी एजेंसियों को वास्तविकता का अंदाजा लगाना चाहिए था। ऐसा लगा जैसे सड़क खाली कराने की जिम्मेदारी पंजाब सरकार की है और ऐसा वह करे या न करे, पीएम तो उसी रास्ते से जाएंगे।
पीएम की जान लेने की कोशिशें भी चुनाव के समय अधिक दिखीं
प्रधानमंत्री की सुरक्षा घेरे में चूक की घटनाओं से इतर भी कई एक घटनाएं हैं जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जान को ख़तरे का ढोल पीटा गया। इनमें से ज्यादातर घटनाएं चुनाव के समय की रहती आई हैं। 2017 में यूपी में चुनाव हुए थे जबकि देश में आम चुनाव का वक्त 2019 था। पीएम की जान को खतरे वाली इन घटनाओं पर गौर करें-
- फरवरी 2017 : यूपी के मऊ में रैली के दौरान हमले की साजिश बेनकाब होने का दावा। हरेन पांड्या मामले के आरोपी रसूल और उसके साथी पीएम के काफिले को रॉकेट लांचर और विस्फोटक से उड़ाने वाले थे।
- जून 2017 : केरल के कोच्चि में नयी मेट्रो रेल का उद्घाटन करने जाने वाले थे पीएम नरेंद्र मोदी। तब केरल के डीजीपी ने पीएम मोदी की जान को आतंकियों से खतरा बताया था।
- जून 2018 : पुणे पुलिस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जान को माओवादियों से खतरा बताया था। रोना विल्सन के घर से पत्र की बरामदगी दिखाई गयी और कहा गया कि राजीव गांधी की तर्ज पर पीएम मोदी को मारने की योजना बनायी गयी है। रोना विल्सन समेत कई बुद्धिजीवी, समाजसेवी, वकील आज तक जेल में हैं।
- अप्रैल 2018 : पुलिस को एक व्यक्ति ने फोन करके बताया था कि वह पीएम मोदी को जान से मारने वाला है। आरोपी मोहम्मद रफीक गिरफ्तार हुआ। उसने एक कार डीलर से कहा था कि वह मोदी को मारने वाला है।
- जून 2018 : नदीम खा़न पर पीएम मोदी को गोली मारने की धमकी संबंधी पोस्ट डालने की वजह से एफआईआर दर्ज हुआ। उसने फेसबुक पर पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा भी लिखा था।
चाहे पीएम की सुरक्षा में सेंधमारी की घटनाएं हों या फिर पीएम की जान को खतरे में डालने वाली बेनकाब हुईं घटनाएं हों- इनमें से कितनी घटनाओं का सच सामने आया है? यह वो सवाल है जो पंजाब में पीएम की सुरक्षा व्यवस्था में दिखी कमी के आलोक में महत्वपूर्ण है। ताजा मामले में पीएम की सुरक्षा व्यवस्था में कोई सेंध नहीं लगी है, बल्कि सुरक्षा घेरे के छेद सामने आए हैं। इस नाकामी को छिपाने के लिए कांग्रेस को साजिशकर्ता बताना और एक कांग्रेसी दलित मुख्यमंत्री पर उंगली उठाना जायज हो सकता है?
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में सबसे बड़ा फर्क यही है कि एक ने गुजरात जाकर पंजाब और पंजाबियत का मान बढ़ाया, तो दूसरे ने पंजाब पहुंचकर एक ऐसी नाकामी का ठीकरा पंजाबियों पर फोड़ा जिसे वे खुद चाहते तो रोक सकते थे। रैली करने की जिद भी नहीं दिखी, बस ऐसा करते हुए आंदोलनकारी किसानों को अराजक और प्रधानमंत्री की जान पर ख़तरा बताने की बेताबी ही नज़र आयी।
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