प्रधानमंत्री ने समूचे देश को आश्चर्यचकित करते हुए भाव-विभोर कर दिया। जनता इस तरह से भावुक होने के लिए तैयार ही नहीं थी। पिछले छह-सात सालों में ‘शायद’ पहली बार ऐसा हुआ होगा कि 130 करोड़ लोगों से उन्होंने अपने ‘मन की बात’ इस तरह से बाँटी होगी। ‘लॉक डाउन’ से होने वाली दिक़्क़तों पर उन्होंने जो कुछ कहा वह चौंकाने वाला था। ‘जब वे अपने भाई-बहनों की तरफ़ देखते हैं तो उन्हें महसूस होता है कि वे सोच रहे होंगे कि ये कैसा प्रधानमंत्री है जिसने हमें इतनी कठिनाइयों में डाल दिया है।’
प्रधानमंत्री की माफ़ी- ख़ुद की या पूरी सरकार की विफलता के लिए?
- विचार
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- 31 Mar, 2020

चीन के वुहान प्रांत में महामारी ने दिसम्बर में ही दस्तक दे दी थी। हमारे यहाँ 30 जनवरी को पहला केस दर्ज होने के बाद से 19 मार्च तक, जब कि प्रधानमंत्री ने स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए 22 मार्च को एक दिन के ‘जनता कर्फ़्यू’ की घोषणा की थी, चीन में कोई तीन हज़ार से ज़्यादा जानें जा चुकी थीं। कोई दो से ज़्यादा महीनों का बहुमूल्य समय केंद्र और राज्यों की लचर व्यवस्था हज़म कर गई।
देश में जो मौजूदा हालात हैं उन्हें देखते हुए भी प्रधानमंत्री से इस तरह की उदारता की उम्मीद किसी को नहीं थी। वह इसलिए कि पिछले वर्षों में कुछेक बार निश्चित ही ऐसी परिस्थितियाँ बन चुकी हैं कि सरकार के ही फ़ैसलों के कारण जनता को अपार कष्टों का सामना करना पड़ा है और उसके लिए कभी किसी भी कोने से कोई सहानुभूति व्यक्त नहीं की गई। माफ़ी माँगना तो बहुत ही बड़ी बात हो जाती।