कोई भी बंदा भविष्यवाणी करने का जोख़िम उठाने के लिये तैयार नहीं है कि जो भयानक दौर अभी चल रहा है उसका कब और कैसे अंत होगा? और यह भी कि अंत होने के बाद पैदा होने वाले उस संकट से दुनिया कैसे निपटेगी जो और भी ज़्यादा मानवीय कष्टों से भरा हो सकता है? स्वीकार करना होगा कि पश्चिमी देशों में जिन मुद्दों को लेकर बहस तेज़ी से चल रही है उन्हें हम छूने से भी क़तरा रहे हैं। पता नहीं, हम कब तक ऐसा कर पाएँगे क्योंकि उनके मुक़ाबले हमारे यहाँ तो हालात और ज़्यादा मुश्किलों से भरे हैं।