दुनिया के तमाम देशों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जिसकी सरकार ने कोरोना की वैश्विक महामारी से निपटने के सिलसिले में हर फ़ैसला अपने राजनीतिक नफा-नुक़सान को ध्यान में रखकर और अपनी छवि चमकाने के मक़सद से किया है। यही वजह है कि इस समय देश में चौतरफ़ा हाहाकार मचा हुआ है। अस्पतालों में बिस्तरों की कमी, दवाओं को लेकर सरकारी विशेषज्ञों की तरफ़ से बनी भ्रम की स्थिति, ज़रूरी दवाओं और ऑक्सीजन के अभाव में तो बड़ी संख्या में लोग मरे ही हैं, और अभी भी मर रहे हैं। इसके साथ ही कोरोना वैक्सीनेशन का अभियान भी बुरी तरह लड़खड़ा गया है।

सरकार ने कोरोना की वैश्विक महामारी से निपटने के सिलसिले में हर फ़ैसला अपने राजनीतिक नफा-नुक़सान को ध्यान में रखकर और अपनी छवि चमकाने के मक़सद से किया है। इससे कोरोना वैक्सीनेशन का अभियान भी बुरी तरह लड़खड़ा गया है।
केंद्र सरकार ने जिस तरह नोटबंदी और जीएसटी के फ़ैसलों से देश की अर्थव्यवस्था को तबाह किया, उसी तरह उसने अपनी वैक्सीन नीति में बार-बार बदलाव करते हुए न सिर्फ़ देश की जनता के स्वास्थ्य को बल्कि राज्य सरकारों को भी आर्थिक रूप से संकट में डाल दिया है। गंभीर सवाल यह खड़ा हो गया है कि देश के हर नागरिक को निकट भविष्य में वैक्सीन लग पाएगी या नहीं?