प्रधानमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के तीसरे वर्ष में प्रवेश कर रहे नरेंद्र मोदी ने इस पद पर कुल मिलाकर सात साल पूरे कर लिए हैं। इन सात सालों के दौरान देश की अर्थव्यवस्था किस तरह तबाह हुई, बेरोजगारों की समस्या में कितना इजाफा हुआ, संसद, न्यायपालिका और चुनाव आयोग समेत तमाम संवैधानिक संस्थाओं की साख कितनी चौपट हुई, पड़ोसी देश चीन हमारी सीमा के भीतर आकर कितना अतिक्रमण कर गया आदि सवाल तो एक अलग ही बहस का विषय है। सिर्फ़ देश के सामाजिक सौहार्द की ही बात करें तो हम पाते हैं कि पूरे सात वर्षों के दौरान देश के काफी बड़े हिस्से में गृह-युद्ध जैसे हालात ही बने रहे।

नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के सात सालों के दौरान देश की अर्थव्यवस्था किस तरह तबाह हुई, बेरोजगारों की समस्या में कितना इजाफा हुआ, संसद, न्यायपालिका और चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की साख कितनी चौपट हुई?
नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने के ढाई महीने बाद जब स्वाधीनता दिवस पर लाल किले से पहली बार देश को संबोधित किया था तो उनके भाषण को देश-दुनिया ने बड़े गौर से सुना था। विकास और हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद की मिश्रित लहर पर सवार होकर सत्ता में आए मोदी ने अपने उस भाषण में देश की आर्थिक और सामाजिक तस्वीर बदलने का इरादा जताते हुए देशवासियों और खासकर अपनी पार्टी तथा उसके सहमना संगठनों से अपील की थी कि अगले दस साल तक देश में सांप्रदायिक या जातीय तनाव के हालात पैदा न होने दें।