सरकार ने अब अपने ही नागरिक भी चुनना प्रारम्भ कर दिया है। सत्ताएँ जब अपने में से ही कुछ लोगों को पसंद नहीं करतीं और मजबूरीवश उन्हें देश की भौगोलिक सीमाओं से बाहर भी नहीं धकेल पातीं तो उन्हें अपने से भावनात्मक रूप से अलग करते हुए अपने ही नागरिकों का चुनाव करने लगती हैं। बीसवीं सदी के प्रसिद्ध जर्मन कवि, नाटककार और नाट्य निर्देशक बर्तोल्त ब्रेख़्त की 1953 में लिखी गई एक सर्वकालिक कविता की पंक्तियाँ हैं-
नागरिकों को ही ‘विपक्ष’ का विपक्षी बनाया जा रहा है!
- विचार
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- 21 Dec, 2020

भारत की धर्मप्राण राजनीतिक प्रयोगशाला में इस समय प्रयोग यह चल रहा है कि बहुसंख्यक नागरिकों को लोकतंत्र की ज़रूरत के प्रति कैसे संवेदनशून्य कर दिया जाए। लोगों के मन में लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों की आवश्यकता के प्रति इतनी धिक्कारपूर्ण भावना पैदा कर दी जाए कि वे उसे सरकार के ‘सुशासन’ के मार्ग में बाधा मानने लगें। दूसरे अर्थों में कहें तो नागरिकों को ही विपक्ष का विपक्षी बना दिया जाए।