दंगों में 65 मौतें लेकिन 41 में 40 मामलों में सब बरी!
न्यायपालिका केवल अंपायर बनी रही तो मॉब-लिंचिंग होगी ही
- विचार
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- 24 Jul, 2019

पिछले हफ़्ते सर्वोच्च न्यायालय ने ‘भीड़ न्याय’ के ख़िलाफ़ सख़्त रुख़ दिखाया तो लेकिन घटनाएँ बढ़ गयीं। क्योंकि चेतावनी यह होनी चाहिए थी कि अगर ‘भीड़ न्याय’ की घटना हुई तो यह मान कर कि प्रशासन ज़िले में असफल रहा, लिहाज़ा एसपी और डीएम को अगले दस साल तक प्रोन्नति नहीं मिलेगी।
तबरेज़, पहलू ख़ान, जुनैद, अख़लाक़ और दर्जनों अन्य मारे गए।
मूल कारण : शक। घर में या टिफ़िन में या साइकिल पर या ट्रक में गोवंश या गोमांस।अन्य कारण : ‘वन्दे मातरम’ या ‘भारत माता की जय’ बुलवाने पर उनका नए ‘राष्ट्र-भक्ति टेस्ट’ में फ़ेल होना या कई बार महज पोशाक या चेहरे पर दाढ़ी के आधार पर हमला कर राष्ट्रवाद की सीख देना या शक करना (कई बार हक़ीक़त भी) कि पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा लगा रहा था या आदमी का बच्चा या कई बार बकरी का बच्चा चुरा रहा था।तरीक़ा : भीड़ में उन्माद पैदा करना और फिर इन्हें पीट-पीट कर मार देना। आदत बढ़ती गयी तो अब ये सामान्य चोर को या चोरी के शक में भी मारने लगे हैं; जैसे बिहार के छपरा और वैशाली में। ‘राष्ट्रवाद’ इन दिनों गोमाता या गोमांस, वन्दे मातरम और भारत माता से फिसलता हुआ आदतन ‘भीड़ न्याय’ में बदल चुका है। भारत के संविधान की उद्देशिका के प्रथम वाक्य ‘हम भारत के लोग’ का स्थान शायद ‘हम भीड़ तंत्र के लोग’ लेता जा रहा है।