केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह दावा देश के सामने पेश किया है कि भारत में कोरोना संक्रमण के फैलने की दर दुनिया के तमाम विकसित देशों से बेहतर और संतोषजनक है। काश! यह वाक़ई सच होता कि 1 अप्रैल के बाद से देश में कोरोना के संक्रमितों की ‘वास्तविक’ संख्या में 40 फ़ीसदी की कमी आयी है और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की सफलता की वजह से देश में संक्रमितों की संख्या के दोगुना होने की अवधि 3 दिन से बढ़कर 6.2 दिन हो गयी है! और, भारत के 19 राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में लॉकडाउन और अन्य उपायों ने उत्साहजनक नतीज़े दिये हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि 17 अप्रैल का यह दावा किसी सियासी हस्ती की ओर से नहीं, बल्कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की ओर से किया गया है, ताकि यदि आगे चलकर ऊँट दूसरी करवट बैठ जाए तो राजनेताओं की छीछालेदर नहीं हो।
क्या भारत में कोरोना के आँकड़ों की तुलना पश्चिमी देशों से हो सकती है?
- विचार
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- 20 Apr, 2020

भारत जहाँ अब प्रति दस लाख की आबादी पर क़रीब 126 टेस्ट के स्तर तक पहुँचा है, वहीं विकसित देश क़रीब 10 हज़ार टेस्ट कर रहे हैं। उनका मक़सद संक्रमितों को ढूँढना है लेकिन हमारा मक़सद पॉजिटिव और नेगेटिव का पता लगाना है। यही है, टेस्टिंग के अलग-अलग पैमानों की महिमा! ज़ाहिर है कि यदि पैमाने अलग-अलग हैं तो फिर आँकड़ों की तुलना कैसे हो सकती है?
मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। 28 साल लम्बे करियर में इन्होंने कई न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। पत्रकारिता की शुरुआत 1990 में टाइम्स समूह के प्रशिक्षण संस्थान से हुई। पत्रकारिता के दौरान इनका दिल्ली