चुनाव जीतकर सत्ता प्राप्त करने और फिर ‘इच्छा-शासन’ का वरदान प्राप्त करके अनिश्चित काल तक हुकूमत में बने रहने का फ़ार्मूला अब काफ़ी सस्ता और आसान हो गया है। हुकूमतों की मदद से सम्पदा का असीमित विस्तार करने में माहिर साबित हो चुके दो-चार या दस-बीस उद्योगपतियों को कोई भी सत्तारूढ़ दल अगर अपने नियंत्रण में ले ले तो फिर ये ही लोग दलालों के ज़रिए मीडिया की मंडी से कुछ बड़े समूहों को सरकारों के लिए ख़रीद लेंगे और अंत में उनमें काम करने वालों में से ही कुछ चुने हुए समर्पित पत्रकारों के आत्मघाती दस्ते देश और दुनिया के करोड़ों लोगों को वही सब कुछ दिखाएँगे जिसे कि सत्ता अपने बने रहने के लिए ज़रूरी समझेगी।