चुनाव जीतकर सत्ता प्राप्त करने और फिर ‘इच्छा-शासन’ का वरदान प्राप्त करके अनिश्चित काल तक हुकूमत में बने रहने का फ़ार्मूला अब काफ़ी सस्ता और आसान हो गया है। हुकूमतों की मदद से सम्पदा का असीमित विस्तार करने में माहिर साबित हो चुके दो-चार या दस-बीस उद्योगपतियों को कोई भी सत्तारूढ़ दल अगर अपने नियंत्रण में ले ले तो फिर ये ही लोग दलालों के ज़रिए मीडिया की मंडी से कुछ बड़े समूहों को सरकारों के लिए ख़रीद लेंगे और अंत में उनमें काम करने वालों में से ही कुछ चुने हुए समर्पित पत्रकारों के आत्मघाती दस्ते देश और दुनिया के करोड़ों लोगों को वही सब कुछ दिखाएँगे जिसे कि सत्ता अपने बने रहने के लिए ज़रूरी समझेगी।
अमन के नाम से नफ़रत बेचने का मीडिया व्यापार!
- विचार
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- 16 May, 2022

जनता को भ्रम हो रहा है कि चैनलों द्वारा जो कुछ भी अप्रिय या नफ़रत फैलाने वाला दिखाया जा रहा है उसके लिए कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाला एंकर ही अकेला दोषी है! कठपुतलियों को हैंडलर मान लेने की गलती की जा रही है। कभी भी यह बाहर नहीं आ पाता है कि नफ़रत की स्क्रिप्ट कौन लिख रहा है!
मीडिया के ये ही हरावल दस्ते किसी धर्म विशेष का प्रचार करने, धार्मिक उन्माद फैलाने, मॉब लिंचिंग की घटनाओं को उत्सवों में परिवर्तित करने, दो समुदायों के बीच नफ़रत पैदा करने, दो देशों के बीच युद्ध करवाने और इस सबके परिणामस्वरूप होने वाली तबाही के बाद शांति के प्रहरी बनकर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले अग्रदूतों की भूमिका भी विनम्रतापूर्वक निभा लेंगे।