मोदी सरकार ने हाल ही में प्रेस की आजादी को खतरे में डालने वाला कानून बनाया है। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया सहित तमाम पत्रकार संगठन, डिजिटल मीडिया अधिकार संगठन आदि ने सरकार के इस कदम का विरोध शुरू कर दिया है। जानिए उस कानून में ऐसा क्या है जो मीडिया के साथ-साथ आम लोगों को भी प्रभावित करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 15 मई को न्यूज क्लिक के संस्थापक और संपादक प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी को अमान्य यानी गलत कहा और उनकी रिहाई का आदेश दिया। यह आदेश महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह आदेश यूएपीए मामले में आया है। उन पर आरोप है कि चीन का प्रोपेगंडा करने के लिए उन्होंने धन प्राप्त किया है। जानिए पूरा मामलाः
इंडिया गठबंधन ने कुछ टीवी एंकरों को उनके नफरत फैलाने वाले कार्यक्रमों की वजह से कुछ दिनों तक बहिष्कार करने का फैसला किया है। लेकिन इस पर भाजपा को सबसे बुरा लगा है। उसने प्रेस की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खतरे में बता दिया। लेकिन सच इसके विपरीत है। भाजपा के दामन में भी कई दाग हैं, जिन्हें उसे इस मौके पर धोना चाहिए।
अमेरिका के 75 डेमोक्रेट सांसदों ने राष्ट्रपति जो बाइडेन से कहा कि वो भारत के पीएम मोदी से बातचीत में तमाम मानवाधिकार के मुद्दों पर बात करें। जिसमें धार्मिक आजाजी, प्रेस की आजादी, सिविल सोसाइटी समूहों पर सरकारी हमले और इंटरनेट शटडाउन जैसे मुद्दे शामिल हैं।
पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने शनिवार शाम एक खास सुनवाई में टाइम्स नाउ की पत्रकार भावना किशोर को जमानत दे दी। लेकिन उनके साथी मृत्युंजय और ड्राइवर को जमानत नहीं मिली।
टाइम्स नाउ समूह की पत्रकार भावना किशोर की गिरफ़्तारी को लेकर पंजाब पुलिस और भगवंत मान सरकार क्यों निशाने पर है? जानिए, गिरफ्तारी को लेकर आप सरकार पर क्या आरोप लग रहे हैं।
भारत में प्रेस की आजादी का जो हाल है, वो सामने है। लेकिन विश्व प्रेस आजादी दिवस के मौके पर हमें उन पत्रकारों को नहीं भूलना चाहिए, जो प्रेस की आजादी बरकरार रखने के लिए कुर्बानी देते आए हैं। वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग म्यांमार की घटना का जिक्र कर रहे हैं।
पुलवामा में मोदी सरकार की नाकामी पर जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक बहुत बड़ा खुलासा कर चुके हैं। लेकिन देश के मुख्यधारा के मीडिया ने सारे मामले पर ऐसे चुप्पी साध ली है, जैसे कुछ हुआ ही न हो। चिन्तक और सत्य हिन्दी के स्तंभकार अपूर्वानंद ने उसी खामोशी के अंदर झांकने की कोशिश की है।
भारत में प्रेस की आजादी खतरे में है। इसमें अब कोई दो राय नहीं है। हाल ही में मीडिया वन चैनल के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, उससे यह बात शीशे की तरह साफ हो गई है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं पहले ही भारती मीडिया की आजादी को लेकर चिन्ताजनक बताया है। वरिष्ठ पत्रकार वंदिता मिश्रा ने अपने कालम में विभिन्न पहलुओं से इस मुद्दे को उठाया है।
क्या राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर किसी को उसके अधिकार से वंचित किया जा सकता है और क्या सरकार की आलोचना 'देश विरोध' है? जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा प्रकाशित वार्षिक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में, भारत 2022 में 150वें स्थान पर है, जो 180 देशों में सबसे कम है। प्रेस स्वतंत्रा के मामले में अमेरिका 42वें स्थान पर है। वहीं रूस भारत से थोड़ा और नीचे 155 वें स्थान पर और चीन 175वें स्थान पर है।
भारत में मीडिया की आजादी पर इतना बड़ा खतरा कभी नहीं आया। देश की मौजूदा सरकार यह कहती हुई सत्ता में आई थी कि वो मीडिया की आजादी को हर हालत में बरकरार रखेगी। लेकिन आज जो हालात हैं, वो सामने हैं। वरिष्ठ पत्रकार वंदिता मिश्रा ने प्रेस की आजादी के मौजूदा खतरों पर नजर डाली है।
प्रेस की आज़ादी पहले से ही ख़तरे में है । अब मोदी सरकार एक नया नियम बनाने जा रही है जिसका ड्राफ़्ट सामने आया है । सरकारी एजेंसी को अधिकार दिया जायेगा कि वो तय करे कि फेक न्यूज़ क्या है और फिर सोशल मीडिया के लिये ऐसी खबर को हटाना अनिवार्य होगा । एडिटर्स गिल्ड के मुताबिक़ ये सेंसरशिप लगाने की तैयारी है । क्या वाकई देश में स्वतंत्र प्रेस पूरी तरह खतम करने की तैयारी चल रही है ?
फ़ेक न्यूज के नाम पर सरकार खबरों को क्या नियंत्रित करना चाहती हैं? मुख्यमंत्री कौन होगा यह भी सरकार तय करती है, जज कौन हो यह भी सरकार तय करना चाहती है और अब क्या खबर है और क्या खबर नहीं है यह भी वहीं तय करेगी. आज की जनादेश चर्चा.