कांग्रेस के 23 बड़े नेताओं ने जब पार्टी में सामूहिक नेतृत्व के सवाल पर अस्पताल में इलाज करवा रहीं सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी और चुपके से उसे मीडिया को जारी भी कर दिया, तब दो चिंताएँ ही प्रमुखता से प्रचारित की गईं या करवाई गईं थीं। पहली यह कि नेतृत्व के मुद्दे को लेकर 136 साल पुरानी पार्टी में व्यापक असंतोष है।
ख़ामोश! मुल्क में अब सवाल पूछना मना है?
- विचार
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- 9 Feb, 2021

माहौल यह है कि हरेक आदमी या तो डरा हुआ है या फिर डरने के लिए अपने आपको राज़ी कर रहा है। इसमें सभी शामिल हैं यानी सभी राजनीतिक कार्यकर्ता, नौकरशाह, मीडिया के बचे हुए लोग, व्यापारी, उद्योगपति, फ़िल्म उद्योग। और, अगर सोमवार को संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रधानमंत्री का उदबोधन सुना गया हो तो, तमाम ‘आंदोलनजीवी’ और ‘परजीवी’ भी।
और दूसरी यह कि ‘गांधी-नेहरू परिवार’ पार्टी पर अपना आधिपत्य छोड़कर ‘सामूहिक नेतृत्व’ की माँग को मंज़ूर नहीं करना चाहता जिसके कारण कांग्रेस लगातार पराजयों का सामना करते हुए विनाश के मार्ग पर बढ़ रही है।