loader
फ़ोटो साभार: ट्विटर/प्रियंका गांधी

किसान आंदोलन के बीच कांग्रेस का ‘गंगा स्नान’ क्यों?

प्रियंका गांधी ने काफ़ी ‘ना-नुकर’ के बाद ही कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में भाग लेने का फ़ैसला लिया था। उन्होंने इस तरह का भ्रम या आभास उत्पन्न कर दिया था कि उनके प्रवेश के साथ ही कांग्रेस में सब कुछ बदल जाएगा, क्रांति आ जाएगी। पिछले लोक सभा चुनाव के समय संभावनाएँ यह भी ज़ाहिर की गई थीं कि वे प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ वाराणसी में नामांकन पत्र भरने का साहस दिखाएँगी। ऐसा नहीं हुआ। 
श्रवण गर्ग

प्रियंका गांधी को संजीदगी से बताए जाने की ज़रूरत है कि जनता इस सम्मोहन से ‘लगभग’ बाहर आ चुकी है कि उसे उनमें अभी भी इंदिरा गांधी की छवि नज़र आती है। ‘लगभग’ शब्द का इस्तेमाल कांग्रेस नेत्री को इस शंका का लाभ देने की गरज से किया गया है कि चमत्कार तो किसी भी उम्र और मुहूर्त में दिखाए जा सकते हैं। ‘मौनी अमावस्या’ के पवित्र दिन प्रियंका प्रयागराज में थीं। भाई राहुल गांधी जिस समय हिंदुत्व की छवि के प्रतीक प्रधानमंत्री पर लोकसभा में हमले की तैयारी कर रहे थे, प्रियंका संगम में डुबकी लगाकर हिंदुत्व का स्नान कर रही थीं, भगवान सूर्य की पूजा कर उन्हें अर्घ्य दे रही थीं। हो सकता है कि प्रियंका ने शक्ति के प्रतीक सूर्य से प्रार्थना की हो कि निस्तेज पड़ी कांग्रेस में जान डालने का कोई उपाय बताएँ।

ताज़ा ख़बरें

ट्रैजेडी यह है कि जिस समय नरेंद्र मोदी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के ज़रिए बीजेपी को हिंदू हितों की संरक्षक पार्टी के रूप में प्रतिष्ठित करने के अभियान में जुटे थे, कांग्रेस के नेता अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की माँग कर उनके (प्रधानमंत्री के) हाथ और मज़बूत कर रहे थे। और अब, जब किसान आंदोलन ने साबित कर दिया है कि बीजेपी का आक्रामक हिंदुत्व सिर्फ़ बीस-पच्चीस करोड़ मुसलमानों को ही डराने की सामर्थ्य रखता है, दो करोड़ सिखों को नहीं तो कांग्रेस के बड़े नेता संदेश देना चाह रहे हैं कि वे केवल निजी आस्थाओं में ही नहीं, सार्वजनिक जीवन में भी समर्पित हिंदू-सेवक और पक्के जनेऊधारी हैं।

बीजेपी और संघ को किसी समय पूरा यक़ीन रहा होगा कि हिंदुत्व की विचारधारा और संगठन ने इतनी मज़बूती हासिल कर ली है कि राष्ट्रवादी सरकार के पक्ष में किसी भी बड़े से बड़े आंदोलन का मुक़ाबला किया जा सकता है। यह यक़ीन अब एक भ्रम साबित हो चुका है। वह इस मायने में कि ‘आंदोलनजीवियों’ का सारा जमावड़ा बीजेपी के राजनीतिक आधिपत्य वाले राज्यों की ज़मीन पर ही हो रहा है और ग़ैर-भाजपाई दलों की सल्तनतों में सन्नाटा है।

हरियाणा में तो मुख्यमंत्री अपने ख़ुद के क्षेत्र में ही सम्मेलन करने नहीं पहुँच पाए! ‘आंदोलनजीवियों’ से मुक़ाबले के लिए प्रायोजित किए जाने वाले सारे सरकारी किसान आंदोलन फ़्लॉप हो गए।

बीजेपी को पता ही नहीं चल पाया कि उसकी सारी तैयारियाँ केवल राजनीतिक और धार्मिक आंदोलनों से निपटने तक ही सीमित हैं, उनमें ग़ैर-राजनीतिक जन-आंदोलनों से मुक़ाबले की कूवत बिलकुल नहीं है। सत्तारूढ़ दल को यह भी समझ में आ गया कि ईमानदार जन-आंदोलनों का साम्प्रदायिक विभाजन नहीं किया जा सकता।

प्रियंका गांधी ने काफ़ी ‘ना-नुकर’ के बाद ही कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में भाग लेने का फ़ैसला लिया था। उन्होंने इस तरह का भ्रम या आभास उत्पन्न कर दिया था कि उनके प्रवेश के साथ ही कांग्रेस में सब कुछ बदल जाएगा, क्रांति आ जाएगी। पिछले लोक सभा चुनाव के समय संभावनाएँ यह भी ज़ाहिर की गई थीं कि वे प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ वाराणसी में नामांकन पत्र भरने का साहस दिखाएँगी। ऐसा नहीं हुआ। वह शायद पराजय की परम्परा के साथ अपनी राजनीति की शुरुआत नहीं करना चाहती थीं। प्रियंका के इनकार से दुखी हुए उनके प्रशंसकों का तब मानना था कि वाराणसी में हार से भी पार्टी में नए जोश का संचार हो जाता। उनकी हार से उपजी सहानुभूति प्रधानमंत्री की बड़ी जीत को भी छोटा कर देती।

priyanka gandhi mauni amavasya ganga snan amid farmers protest - Satya Hindi
जिस तरह देश में सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योगों की स्थापना और उनके विस्तार का श्रेय कांग्रेस को दिया जाता है उसी तरह धार्मिक रूप से भी उसकी व्यापक पहचान धर्म-निरपेक्षता या सर्व धर्म समभाव को मानने वाली पार्टी के रूप में रही है। इस समय धर्म के क्षेत्र में जिस ‘हिंदुत्व’ को स्थापित किया जा रहा है उसकी औद्योगिक परिभाषा ‘प्राइवेट सेक्टर’ या ‘निजी क्षेत्र’ का विस्तार करने के रूप में समझी जा सकती है। सरकार धर्म और औद्योगिक क्षेत्र दोनों में ही यह कर रही है :  सार्वजनिक क्षेत्र को सरकार निजी हाथों में बेच रही है और सर्व धर्म समभाव या धर्म निरपेक्षता का हिंदूकरण किया जा रहा है।
कांग्रेस का सार्वजनिक रूप से संगम स्नान इस ग़लतफ़हमी का शिकार हो सकता है कि प्रधानमंत्री बदलती हुई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में भी केवल धर्म और भावनाएँ बाँटकर अपना काम चलाने वाले हैं।

मोदी इस समय बीजेपी को एक परिष्कृत कांग्रेसी संस्करण में परिवर्तित कर उसे सार्वदेशिक बनाने में जुटे हैं। भिन्न-भिन्न दलों से प्रतिभाशाली और वाचाल लोगों का राजनीतिक ‘अपहरण’ कर उनके गलों में बीजेपी के प्रतीक चिन्ह लटका देना इसके ताज़ा उदाहरण हैं। मोदी के पास ताज़ा जानकारी यह भी है कि अभिन्न मित्र ट्रम्प का आक्रामक ‘सवर्ण राष्ट्रवाद’ तमाम प्रयत्नों और गोरी चमड़ी वाले समर्थकों की हिंसा के बावजूद एक समर्पित कैथोलिक ईसाई बायडन की अल्पसंख्यक धर्म निरपेक्षता के सामने अंततः कमज़ोर ही साबित हुआ। अमेरिका के ‘ब्लैक लाइव्ज़ मैटर’ को सिंघू बॉर्डर के किसान आंदोलन‘ में ढूँढा जा सकता है।

वीडियो में देखिए, क्या बीजेपी के जाल में फँस गईं प्रियंका?
प्रयागराज के बाहर जिस महान भारत की आत्मा बसी हुई है वह इस समय किसान आंदोलन के समानांतर ही एक चुनौतीपूर्ण राजनीतिक अहिंसक आंदोलन की प्रतीक्षा कर रहा है। ऐसा इसलिए कि किसान आंदोलन अपने मंच पर कांग्रेस को राजनीतिक सवारी नहीं करने देगा। ऐसा हुआ भी तो उसका मंच कांग्रेस के बोझ से ही चरमरा जाएगा। किसानों के सामने इस वक़्त चुनौती कांग्रेस की बंजर होती ज़मीन को खाद-पानी देने की नहीं बल्कि अपने ही लहलहाते खेतों की बचाने की है। हमें पता नहीं सूर्य को अर्घ्य देते समय प्रियंका ने कांग्रेस को किसी बड़े आंदोलन में परिवर्तित करने की प्रार्थना की थी या नहीं। गंगा में नौका विहार करने के बाद ख्यात कवि सोहनलाल द्विवेदी की कविता की दो पंक्तियाँ उन्होंने अवश्य ट्वीट की हैं।
पंक्तियों के अर्थ निकालने के लिए उनके कांग्रेसी भक्त स्वतंत्र हैं: ‘लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती/ कोशिश करने वालों की हार नहीं होती’। प्रियंका जानती हैं कि गंगा प्रयागराज से ही मोक्षदायिनी नगरी काशी (वाराणसी) भी पहुँचती है।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
श्रवण गर्ग
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें