देश जब दिक्कतों का सामना कर रहा हो, जनता या तो घरों में बंद हो या सड़कों पर पैदल चल रही हो, आपदा प्रबंधन के तहत सारी शक्तियाँ कुछ व्यक्ति-समूहों में केंद्रित हो गई हों, उस स्थिति में अदालतों, विपक्ष और मीडिया को क्या काम करने चाहिए? और क्या इन सबके कामों का प्रबंधन भी कोरोना के इलाज और वेंटिलेटरों की ख़रीदी की तरह ही कार्यपालिका के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए? क्या 1975 के आपातकाल के दौरान ऐसी ही सर्व-मान्य व्यवस्था क़ायम थी? क्या यूपीए सरकार के दौरान अदालतों की कोई भूमिका ही नहीं थी? टू-जी प्रकरण और कोयला खानों के आवंटन में हुए कथित भ्रष्टाचार के मामले क्या तब सड़कों पर निपटाए गए थे?