बहुध्रुवीयता अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की वामपंथी समझ को दिशा देने वाला कम्पास है। भारत और वैश्विक वामपंथ की सभी धाराओं ने लम्बे समय से साम्राज्यवादी अमेरिकी वर्चस्व वाली 'एकध्रुवीय' दुनिया की अवधारणा के खिलाफ 'बहुध्रुवीय' विश्व की वकालत की है। दूसरी ओर, 'बहुध्रुवीयता' वैश्विक फासीवाद और तानाशाही की साझी भाषा का मूल आधार बन गई है। यह निरंकुश शासकों के लिए एकजुटता का ऐसा आह्वान है, जो लोकतंत्र पर उनके हमले को साम्राज्यवाद के खिलाफ जंग की शक्ल में पेश करती है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के साम्राज्यवाद-विरोधी लोकतंत्रीकरण के नाम पर बहुध्रुवीयता को वैश्विक वामपंथ के गुंजायमान समर्थन ने, निरंकुशता का भेस बदलने और उसे वैधता दिलाने के लिए 'बहुध्रुवीयता' के इस्तेमाल को असीमित शक्ति प्रदान कर दी है।
बहुध्रुवीयता : तानाशाही का नया मूलमंत्र
- विचार
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- 21 Jan, 2023
बहुध्रुवीय विश्व की वकालत करने वालों के नायक अब तानाशाह हो गए हैं और वे ग्लोबल फासीवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। इनकी भाषा को समझिए। लोकतंत्र पर हमला अब साम्राज्यवाद के खिलाफ जंग की शक्ल में पेश किया जा रहा है। एक्टिविस्ट कविता कृष्णन के इस लेख को पढ़ने से आपको लोकतंत्र के नाम पर की जा रही तानाशाही की वकालत को समझने का नया नजरिया मिलेगा। जरूर पढ़िएः
