आज़ादी मापने की चीज है या नहीं, अनुभव करने की चीज है या नहीं या फिर देश और नेता के नाम पर सब कुछ भूल जाने की आदत डाल लेनी चाहिए? यह सवाल अमेरिका की संस्था, केटो इंस्टीट्यूट और कनाडा की संस्था फ्रेजर इंस्टीट्यूट द्वारा जारी दुनिया के 162 देशों की रैंकिंग के बाद ढंग से उठाए जाने चाहिए थे क्योंकि इसमें भारत की आज़ादी को ‘आधी’ बता दिया गया है और उसकी रैंकिंग 94वें स्थान से गिरकर 111 स्थान पर आ गई है। और इसे आधार बनाकर जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी देश के लोकतांत्रिक न होने का दावा करते हैं तो बीजेपी और संघ परिवार बड़ी सुविधा से इस बहस को शुरू होने से पहले ही हवा में उड़ा देने का प्रयास करते हैं।
अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ क्यों गिरा रही हैं भारत की रेटिंग?
- विचार
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- अरविंद मोहन
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- 16 Mar, 2021


अरविंद मोहन
अनेक अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने जब आर्थिक कामकाज और प्रदर्शन पर भारत की रेटिंग गिरानी शुरू की तो इस बार संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में बाजाप्ता इस बात की शिकायत की गई है कि हमारी आर्थिक स्थिति जैसी है वह बाहर की रेटिंग में क्यों प्रदर्शित नहीं होती। कई लोग मानते हैं कि सरकारी आँकड़े कुछ भी कहें दुनिया उसे मान ले यह ज़रूरी नहीं।
इस रिपोर्ट के साथ जो नक्शा लगाया गया है वह और चौंकाने वाला है क्योंकि उसमें पूरे जम्मू और कश्मीर को बाहर कर दिया गया है। और हैरानी की बात है कि इतनी बड़ी चूक या शरारत के बाद भी भारत सरकार, भारतीय जनता पार्टी या संघ परिवार की तरफ़ से इस बात पर आपत्ति भी नहीं की गई है। यह काम भी एक कांग्रेसी सांसद ने किया।
अरविंद मोहन
अरविंद मोहन वरिष्ठ पत्रकार हैं और समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।