चुनाव का दबाव ही सही पर अगर सरकार ने बैंक की छोटी जमा पर सूद की दर घटाने के निर्णय को कुछ घंटों में भूल बताकर वापस ले लिया तो इस बात की भी खैर माननी चाहिए। इसमें मीडिया और खास तौर से सोशल मीडिया की भूमिका भी महत्वपूर्ण थी जो लोगों को सूचित करने से भी ज़्यादा तत्काल उनकी प्रतिक्रिया का अन्दाजा देने में सफल रही और उस प्रतिक्रिया के साथ सरकार को बंगाल और असम चुनाव के मैदान में अपने पांव उखड़ने का डर था।
बैंक जमा पर सूद दर कम करने से ज़्यादा इस लूट पर चुप्पी क्यों?
- अर्थतंत्र
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- 4 Apr, 2021

कहना न होगा कि जिस तरह कोरोना की आड़ में सार्वजनिक परिवहन को चौपट कर निजी वाहनों का जोर बढ़ाया गया है, वैसा ही अब इसी अवधि में नई ऑटोमोबाइल नीति के ज़रिए पर्यावरण रक्षा के नाम पर बड़ी मोटर कम्पनियों की जेब भरने का काम होने जा रहा है।
बजट की घोषणा और उसके बाद आई नई ऑटोमोबाइल नीति के ज़रिए सरकार जो खेल खेल रही है या खेलने जा रही है, उसके आगे बैंक की बचत पर सूद घटाना बहुत छोटा फ़ैसला लगता है। नई ऑटोमोबाइल नीति तो सीधे-सीधे बड़ी ऑटो कम्पनियों की जेब भरने वाली है, आम लोगों पर चोट होगी और साधनों की सीधी बर्बादी। यह सब सरकार पर्यावरण रक्षा के नाम पर कर रही है।