अमेरिकी सिनेमा की तुलना में भारतीय सिनेमा अक्सर समाज की कमज़ोर नस पर हाथ रखने से डरता भी है और बचता भी है। लेकिन अनुभव सिन्हा ने लगातार दो फ़िल्में बनाकर इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की है। ‘आर्टिकल 15’ अनुभव सिन्हा की अद्भुत फ़िल्म है। ‘आर्टिकल 15’ अनुभव की फ़िल्म ‘मुल्क़’ की तरह वर्तमान भारत को न केवल झकझोरती है बल्कि उसके सामने एक ऐसा नंगा सच सामने लाकर खड़ा कर देती है जिससे सिर्फ़ आँखें ही चुराया जा सकता है, या फिर पूरा समाज शर्मसार हो सकता हैं। फ़िल्म एक सवाल पूछती है एक महान सभ्यता कैसे सदियों से ऐसे सामाजिक अभिशाप के साथ जी रही है और अब तक उसने क्यों इस सामाजिक कोढ़ से निजात पाने की निर्णायक कोशिश नहीं की? ये कोढ़ है जातिवाद का।