किसान आन्दोलन के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विगत 29 नवम्बर को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में तीनों क़ानूनों को न केवल भाग्य बदलने वाला बताया बल्कि उसके अमल में आने का ताज़ा साक्ष्य देते हुए महाराष्ट्र के धुले के किसान जीतेन्द्र भोइजी की चर्चा की। यह भी दिखाया गया कि एक न्यूज़ एजेंसी के कैमरे पर जीतेंद्र ने कहा कि उसने मध्य प्रदेश के एक व्यापारी को 3.32 लाख रुपये का मक्का बेचा लेकिन वह पैसे नहीं दे रहा था तो क़ानून के प्रावधान के तहत एसडीएम से शिकायत के तत्काल बाद व्यापारी किस्तों में पैसा देने को राज़ी हो गया। मोदी ने यह प्रकरण बता कर सिद्ध करना चाहा कि तीनों क़ानून कैसे किसानों को जंजीरों से मुक्त करेगा।
क्या प्रधानमंत्री मोदी के दावों पर विश्वास करेंगे किसान?
- विचार
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- 6 Dec, 2020

बिरले जननेता होते हैं जिनपर जनता को इतना भरोसा होता है जितना सन 2014 में मोदी पर रहा। फिर क्यों इस भरोसे को तोड़ने की ज़रूरत पड़ती है। संभव है प्रतिस्पर्धात्मक प्रजातंत्र में चुनाव मंचों से उत्साह में व्यक्ति ज़्यादा आगे बढ़ कर बोल देता है लेकिन ‘मन की बात’ (जैसा नाम से ही लगता है) तो सदाशय प्रयास था।
लेकिन पाँच दिन बाद ही उसी जीतेंद्र ने मीडिया में अपनी बात रखते हुए बताया कि वह इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ है क्योंकि इसी क़ानून के तहत सरकारी क्रय-केंद्र पर उसका 340 कुंतल मक्का 1800 रुपये प्रति कुंतल के एमएसपी पर ‘कोटा ख़त्म हो गया’ कह कर खरीदने से मना कर दिया गया और उसे मजबूरन 1200 रुपये के भाव पर उक्त व्यापारी को बेचना पड़ा। इस पर जीतेंद्र को दो लाख का घाटा हुआ। लिहाज़ा जीतेंद्र ने पाँच दिन में ही मोदी जी के ‘यूएसपी’ को पलट दिया यह कह कर कि वह तीनों क़ानूनों के ख़िलाफ़ है क्योंकि ये किसान विरोधी हैं।