आइकन (प्रतिमान) बनाना हर समाज में एक अपरिहार्य प्रक्रिया है। आइकन इसलिये बनाये जाते हैं कि समाज उनके द्वारा स्थापित मूल्यों को जीवन में उतारे। ये उस खूंटे की मानिंद होते हैं जिन्हें अपने फिसलन के दौरान समाज पकड़ लेता है और अवनति से बच जाता है। लेकिन इसकी दो शर्तें हैं- प्रतिमान बनाने में समाज को बेहद सतर्कता की ज़रूरत होती है और दूसरा, आइकन बनने का शौक हर व्यक्ति में होता है पर उससे अपेक्षा होती है कि वह नैतिक या प्रोफ़ेशनल मूल्यों पर आदर्श प्रस्तुत करे क्योंकि समाज उसकी ओर ही निहारता है।
क्यों आइकन बनना आसान है, खरा उतरना मुश्किल?
- विचार
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- 26 Nov, 2020

स्टैंडअप कॉमेडियन भारती सिंह और उसके पति को गांजा रखने और पीने के आरोप में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने गिरफ्तार किया। इसके पहले दीपिका पदुकोण सहित फ़िल्मी दुनिया की कई बड़ी युवा हस्तियाँ नशे के उपभोग या व्यापर में ब्यूरो के राडार पर हैं। ये वे लोग हैं जिनके जिनके परदे पर दिखाए गए शौर्य, हाज़िरजवाबी, आदर्शवादिता से आम जनता इतनी मुतास्सिर होती है कि इन्हें अपना आइकन मानने लगती है।
कोई राजनीतिक व्यक्ति या कोई फ़िल्मी सितारा या क्रिकेट का खिलाड़ी यह कह कर नहीं बच सकता कि यह उसका ‘निजी’ मामला है। राजनेता जब सत्ता में होता है तो उसके भरोसे 30 लाख करोड़ रुपये का बजट और 139 करोड़ लोगों का भाग्य होता है। लिहाज़ा विवाहेत्तर किसी महिला से उसके अन्तरंग सम्बन्ध के कई ख़तरे होते हैं। और भले ही वह ऐसा न करे फिर भी समाज को शंका रहती है कि उस महिला के प्रभाव में ग़लत या जनहित के ख़िलाफ़ फ़ैसले न ले ले।