वैसे तो पिछले लंबे समय से अर्थव्यवस्था के क्षेत्र से आ रही सभी खबरें निराश करने वाली ही हैं, लेकिन इन दिनों बेरोजगारी में इजाफे के साथ ही सबसे बड़ी और बुरी खबर यह है कि आम आदमी को महंगाई से राहत मिलने के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं।

दिवाली अब बाज़ार की चपेट में ज़्यादा दिखाई देती है। ऐसा लगता है कि बाज़ारवाद हमारे संबंधों और जीवन पर बहुत ज़्यादा हावी हो चुका है।
महंगाई की मार
सरकार की नीतियों से अनाज, दाल-दलहन, चीनी, फल, सब्जी, दूध इत्यादि आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं और सरकार खुद भी आए दिन पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाकर और अपनी इस करनी को देश के आर्थिक विकास के लिए जरूरी बता कर आम आदमी के जले पर नमक छिड़कने का काम कर रही है।
बेरोजगारी या काम-धंधा ठप होने की वजह से लोगों के आत्महत्या करने की खबरें भी लगातार आ रही हैं। किसान अपनी खेती के लिए नए कृषि कानूनों को विनाशकारी मानते हुए पिछले एक साल से आंदोलन कर रहे हैं।