सुन कर कुछ राहत मिली कि चुनाव आयोग भी नाराज हो सकता है। नाराज किस पर हुआ, यह आगे देखा जाएगा लेकिन इतना तो साबित हो गया कि संस्था जीवंत है। आमतौर पर केचुआ अगर तन कर प्रति-आघात करे तो यह उसके अस्तित्व की तस्दीक है। प्रजातंत्र में कोई संस्था “इंजर्ड इनोसेंस” दिखा कर देश को गुमराह करने के लिए ही अगर “सेलेक्टिव एप्प्रोप्रिएशन ऑफ़ फैक्ट्स” (अपने तर्क के समर्थन में मतलब वाला तथ्य प्रस्तुत करना) और सेलेक्टिव एम्नेशिया (असहज करने वाले तथ्य को भूलने का नाटक) का सहारा लेकर तन कर खड़ी होती है तो उम्मीद बनती है कि कभी न कभी इसकी रीढ़ भी बनेगी।
चुनाव आयोग नाराज़ है यानी ज़िंदा है!
- विचार
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- 12 May, 2024

फाइल फोटो
सर्वाइवल इम्परेटिव नहीं तो क्या है जब विपक्ष के छोटे से आक्षेप पर आयोग नोटिस भेज देता है लेकिन भाजपा के एक चीफ मिनिस्टर के चुनाव भाषण में “औरंगजेब की औलादों को सबक सिखायेंगें” कहने पर भी आयोग मुंह फेर लेता है।
चुनाव आयोग ने कांग्रेस अध्यक्ष के पत्र पर नाराजगी दिखाते हुए कहा कि इससे मतदाताओं पर “नकारात्मक असर” पड़ेगा। दरअसल, अध्यक्ष ने अपने पत्र में शंका व्यक्त की थी क्योंकि आयोग ने मत-प्रतिशत का अंतिम आंकड़ा दस दिनों बाद दिया जो अपेक्षाकृत काफी बढ़ा हुआ था। इससे चुनाव में गड़बड़ी का शक विपक्षी दलों को था। इतना विलंब पहली बार हुआ और वह भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के ज़माने में जबकि मत-पेटियों के जिला मुख्यालय पहुँचने के चंद मिनटों-घंटों में अंतिम आंकड़ा मिल जाया करता था।