सुन कर कुछ राहत मिली कि चुनाव आयोग भी नाराज हो सकता है। नाराज किस पर हुआ, यह आगे देखा जाएगा लेकिन इतना तो साबित हो गया कि संस्था जीवंत है। आमतौर पर केचुआ अगर तन कर प्रति-आघात करे तो यह उसके अस्तित्व की तस्दीक है। प्रजातंत्र में कोई संस्था “इंजर्ड इनोसेंस” दिखा कर देश को गुमराह करने के लिए ही अगर “सेलेक्टिव एप्प्रोप्रिएशन ऑफ़ फैक्ट्स” (अपने तर्क के समर्थन में मतलब वाला तथ्य प्रस्तुत करना) और सेलेक्टिव एम्नेशिया (असहज करने वाले तथ्य को भूलने का नाटक) का सहारा लेकर तन कर खड़ी होती है तो उम्मीद बनती है कि कभी न कभी इसकी रीढ़ भी बनेगी।