दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल प्रशासन के मामले में निश्चित ही दूसरी पार्टियों के मुख्यमंत्रियों से थोड़ा अलग हैं, लेकिन पार्टी चलाने के मामले में उनमें और अन्य क्षेत्रीय दलों के नेताओं में रत्तीभर का फर्क नहीं है। जिस तरह देश की तमाम क्षेत्रीय या प्रादेशिक पार्टियों में उनके संस्थापक नेता ही हमेशा अध्यक्ष रहते हैं और उनके सक्रिय राजनीति से अलग हो जाने या उनकी मृत्यु के बाद अध्यक्ष पद कारोबारी संस्थान की मिल्कियत की तरह उनके बेटे या बेटी को हस्तांतरित हो जाता है, उसी तरह आम आदमी पार्टी में भी पहले दिन से ही अरविंद केजरीवाल संयोजक बने हुए हैं और संभवतया आजीवन बने रहेंगे। पिछले दिनों उन्हें तीसरी बार पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक चुना गया है।

अरविंद केजरीवाल क्या आम आदमी पार्टी को चलाने में दूसरी पार्टियों से अलग हैं? उन्होंने पार्टी के संविधान में संशोधन करवा कर दो बार से ज़्यादा नहीं चुने जाने की बंदिश क्यों हटवा दी? कार्यकाल भी पांच साल क्यों करवा लिया?
अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, मायावती की बहुजन समाज पार्टी, लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी, तमिलनाडु की द्रविड मुनैत्र कडगम (डीएमके), के. चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति, हेमंत सोरेन का झारखंड मुक्ति मोर्चा, चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी, जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस, फारुक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेन्स, महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी तथा पूर्वोत्तर राज्यों की कई क्षेत्रीय पार्टियाँ ऐसी ही हैं, जिनमें वर्षों से एक ही व्यक्ति पार्टी का मुखिया है और उसके अलावा कोई मुखिया बनने की सोच भी नहीं सकता। ये पार्टियाँ जब सत्ता में होती हैं तो सरकार का नेतृत्व भी पार्टी का मुखिया या उनके परिवार का ही कोई सदस्य करता है। आम आदमी पार्टी को भी अब ऐसी ही पार्टियों में शुमार किया जा सकता है।