कांग्रेस के घोषणापत्र में लोगों के ज़िंदगी से जुड़ी तमाम ‘ठोस’ घोषणाओं के बाद सबकी निगाहें बीजेपी के घोषणापत्र पर लगी थीं। रविवार को पीएम मोदी ने तमाम वरिष्ठ बीजेपी नेताओं के साथ विकसित भारत की गारंटी वाले पार्टी का ‘संकल्प पत्र’ का ऐलान किया लेकिन इसमें भारत के दु:खों का कोई इलाज नहीं दिखा। उल्टा इन दुखों के प्रति जैसे आँख ही मूँद ली गयी हो। राहुल गाँधी ने ठीक ही कहा, “भाजपा के मेनिफेस्टो और नरेंद्र मोदी के भाषण से दो शब्द गायब हैं- महंगाई और बेरोजगारी। लोगों के जीवन से जुड़े सबसे अहम मुद्दों पर भाजपा चर्चा तक नहीं करना चाहती। 'INDIA' का प्लान बिलकुल स्पष्ट है- 30 लाख पदों पर भर्ती और हर शिक्षित युवा को 1 लाख की पक्की नौकरी। युवा इस बार मोदी के झांसे में नहीं आने वाला, अब वो कांग्रेस का हाथ मजबूत कर देश में ‘रोजगार क्रांति’ लाएगा।”
बीजेपी का घोषणापत्र: मोदी के झोले में भारत के दु:खों की दवा नहीं!
- विचार
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- 15 Apr, 2024

लोकसभा चुनाव को लेकर जारी किए गए बीजेपी और कांग्रेस के घोषणापत्र में क्या अंतर है? किसके घोषणापत्र में आम लोगों से जुड़े वादे किए गए हैं?
राहुल गाँधी का ‘रोज़गार क्रांति’ का वादा देश के नौजवानों की दुखती रग पर हाथ रखने जैसा है। यह सिर्फ़ विपक्ष के किसी नेता की ओर से घेरने की कोशिश नहीं है, सीएसडीएस-लोकनीति के हालिया सर्वेक्षण से ज़ाहिर हुआ है कि बेरोज़गारी को भारत के 27 फ़ीसदी लोग लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं। दूसरे नंबर पर महँगाई है जिसे 23 फ़ीसदी लोगों ने सबसे बड़ा मुद्दा माना है। विपक्ष इन दोनों ही मुद्दों पर मोदी सरकार को सबसे ज़्यादा घेर रहा है। इसके बावजूद बीजेपी के संकल्प पत्र में लोगों के इन दोनों महा-दुखों का संज्ञान ही नहीं लिया गया है। जबकि दस साल पहले ‘बहुत हुई महँगाई की मार’ और ‘हर साल दो करोड़ नौजवानों को रोज़गार’ देने के वादे के तहत ही मोदी जी पहली बार पीएम की कुर्सी पर बैठने में क़ामयाब हुए थे।