अमेरिका में पचास राज्य हैं और विभिन्न मुद्दों पर हर राज्य में अलग-अलग कानून संभव हैं। फिर भी अमेरिका की एकता और अखंडता पर कोई सवाल उठाना हास्यास्पद ही होगा। ‘लोकतंत्र की जननी’ भारत के प्रधानमंत्री बतौर नरेंद्र मोदी अपनी हालिया यात्रा के दौरान अगर ‘सबसे बड़े लोकतंत्र’ अमेरिका की इस विशिष्टता की ओर ध्यान दे पाते तो शायद मध्यप्रदेश पहुँचकर समान नागरिक संहिता को ज़रूरी बताते हुए ये सवाल न उठाते कि एक देश में दो कानून कैसे रह सकते हैं? या फिर हक़ीक़त वे जानते हैं पर मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की दुर्गति की आशंका से घबराकर ऐसे मुद्दों को हवा देने में जुट गये हैं जो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने की बीजेपी की रणनीतिक योजना के अनुकूल हैं।
समान नागरिक संहिता जैसे गंभीर विषय को चुनावी दाँव में बदलना ख़तरनाक है!
- विचार
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- 28 Jun, 2023

मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समान नागरिक संहिता लाने की बात क्यों कह रहे हैं? क्या इसकी ज़रूरत है?
संविधान निर्माताओं ने समान नागरिक संहिता को कानूनी मान्यता न देते हुए एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में अपनाया था। संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि ‘राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा’। उन्हें यह अच्छी तरह पता था कि विभिन्नताओं से भरे भारत में समान नागरिक संहिता एक दूरगामी लक्ष्य ही हो सकता है। लेकिन बीजेपी अपने पूर्व अवतार जनसंघ के समय से ही समान नागरिक संहिता के विचार को मुसलमानों को सबक़ सिखाने के मक़सद से उछालती रही है। लगातार यह दुष्प्रचार किया गया कि मुसलमान चार शादी करते हैं जबकि हिंदू एक ही कर सकता है। समान नागरिक संहिता इस पर रोक लगाएगी। चार बीवियों वाले किसी मुस्लिम परिवार का अता-पता तो उन्हें भी नहीं मालूम लेकिन ‘चार बीबी-चालीस बच्चे’ का नारा उन्होंने खूब चलाया। बल्कि समान नागरिक संहिता के पूरे विचार को इतने तक ही सीमित रखने में ही रुचि दिखायी।